
इंदौर। टाटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन पद से मिस्त्री को हटाए जाने की घटना को लोग समझ नहीं पा रहे हैं। यही वजह है कि देश के बड़े स्कूल अब इसको केस स्टडी के रूप में देख रहे हैं। आईआईएम इंदौर के कई प्रोफेसर्स तो इस पर शोध-पत्र तैयार करने की बात कह रहे हैं।
50 से ज्यादा शोध-पत्र तैयार कर चुके प्रोफेसर कमल किशोर जैन का कहना है यह ऐसी घटना है जिसे हर बिजनेस स्कूल और भावी कार्पोरेट्स को पढ़ाया जाना चाहिए। डाएरेक्टर ऋषिकेश टी कृष्णन के लौटते ही हम इस पर रिसर्च की तैयारियां करेंगे।
आईआईएम में यंग फैकल्टी रिसर्च चेअर से जुड़े और इंदौर मैनेजमेंट जर्नल के संपादक प्रोफेसर सुशांत मिश्रा कहते हैं इंफोसिस, बजाज जैसी कंपनियों में भी सक्सेशन प्लान फेल था मगर टाटा के केस के बाद अब नए सिरे से शोध शुरू होगा कि औैद्योगिक घरानों में उत्तराधिकार कैसे चुने और तैयार किए जाएं?
इससे पहले आईआईएम इंदौर में एपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स को निकाले जाने, उसके वापस आने और फिर कंपनी के मुनाफे में लौटने की केस स्टडी की है। हावड़ा ब्रिज बनाने वाली 100 साल पुरानी बैथवेट कंपनी कैसे एक साल में 200 करोड़ का मुनाफा कमाया और फिर 500 करोड़ के घाटे में कैसे चली गई।
इस तरह के प्रायवेट पब्लिक पार्टनरशिप कंपनियों पर रिसर्च करने में माहिर एसोसिएट प्रोफेसर स्वपनिल गर्ग के मुताबिक किसी भी कार्पोरेट कंपनी में सीईओ के लिए चार साल की अवधि पर्याप्त मानी गई है इसलिए यह केस सिर्फ उत्तराधिकार का मामला नहीं बल्कि लीडरशिप भी है।
यह केस स्टीव जॉब्स के केस के ज्यादा करीब है, जिसने लौटकर कंपनी को घाटे से उबारा। क्या इसमें भी ऐसा होगा? वहीं इकनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर सिदार्थ के रस्तोगी का कहना है टाटा केस बिलकुल अब तक का सबसे अलग केस है, जिसमें उत्तराधिकार, लीडरशिप से लेकर अर्थव्यवस्था तक सभी पहलुओं पर शोध करना होगा।
- सक्सेशन प्लान (उत्तराधिकार योजना): उत्तराधिकार चुनने के लिए बड़ी कार्पोरेट कंपनियां दो से पांच साल का समय लेती है। सायरस मिस्त्री को चुनते वक्त भी यह प्रक्रिया अपनाई गई थी। फिर प्लान फेल क्यों हुआ? चयन कर्ता से चूक हुई या मिस्त्री की कार्यशैली में बदलाव से कंपनी को घाटा हुआ?
- लीडरशिप स्टाइल: एक लीडर के जाने के बाद दूसरे लीडर को कंपनी में खुद को स्थापित करने के लिए क्या स्टाइल अपनाना चाहिए?
- आईकोनिक लीडरशिप: टाटा जैसे कद्दावर लीडर के बाद खुद को स्थापित करने में मिस्त्री को क्या परेशानी आई और कहां चूक हुई?
- बर्खास्तगी (फायरिंग): टाटा जैसी कंपनी में कर्मचारियों को नौकरी से निकालने से पहले तीन महीने की ट्रेनिंग दी जाती है और फिर दूसरी नौकरी ढूंढने में मदद की जाती है। ऐसे में इस कंपनी में सायरस मिस्त्री ने कर्मचारियों को निकालते वक्त क्या मूल्यों को ध्यान रखा? सायरस मिस्त्री को जिस तरह से फायर किया गया, क्या वो भी टाटा कंपनी के मूल्यों के खिलाफ है?
- ऑटोमेशन (मशीनीकरण) :आने वाले समय में मशीनीकरण बढ़ेगा मगर उसकी अपनी एक गति है। मिस्त्री ने चार सालों में ऑटोमेशन (मशीनीकरण) को बहुत ज्यादा बढ़ावा दिया। क्या यह सही था? कंपनी को फायदा हुआ या नुकसान
- पूंजी की लागत: सिर्फ तीन कंपनियों के मुनाफे के बदौलत ही चल रही थी टाटा की कंपनियां। बाकी कंपनियों को बचाने के लिए कोई योजना बनाई गई थी या नहीं। यदि हां तो कारगर क्यों नहीं रही
- भारतीय अर्थव्यस्था और मुनाफा : जिस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्था दुनियाभर में अच्छी है और अन्य कंपनियां मुनाफा कमा रही है तो टाटा में गिरावट क्यों हुई? वहीं यह भी देखना होगा कि जिन तीन सेक्टर ऑटोमोबाइल, सॉफ्टवेअर, स्टील में टाटा की कंपनियां परेशानी में आईं, उसमें विश्वभर की कंपनियों का बैलेंसशीट गिरा है? ऐसे में क्या मिस्त्री दोषी हैं?
- कंपनी का भरोसा : मिस्त्री पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने टाटा के बजाय अपनी कंपनी शापूरजी पालोनजी को ज्यादा तवज्जो दी।
- साख:टाटा को मैन ऑफ वर्ड कहा जाता है मगर आरोप है कि डोकोमो मामले में इसका ध्यान नहीं रखने से साख गिरी। क्या टाटा जैसी कंपनी पर घाटे से ज्यादा असर साख गिरने से होता है? टाटा और मिस्त्री की भूमिका?