झारखंड की दनुआं घाटी को कहा जाता है ‘मौत की घाटी’ ! जानें क्यों …

झारखंड के हजारीबाग जिले की दनुआं घाटी को ‘मौत की घाटी’ क्यों कहा जाने लगा है? वजह है यहां आये दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाएं और उनमें होनी वाली मौतों के आंकड़े.

जनवरी माह से अब तक 50 से ज्यादा लोगों को इस इलाके में वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से जान गंवानी पड़ी.

हजारीबाग जिले के चौपारण डिविजन हेडक्वॉर्टर से चोरदाहा की दूरी 17 किमी है. नेशनल हाईवे-2 से जुड़ा ये इलाका ‘एक्सिडेंटल जोन’ बना हुआ है.

नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) की ओर से यहां सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है. 10 जून को यहां हुए भीषण बस दुर्घटना ने हर किसी को हिला दिया.

हादसे ने प्रदेश की राजधानी रांची तक सरकारी अमले को भी झिंझोड़ा. बीते तीन दिन में हजारीबाग से सरकारी बाबुओं का दनुआं घाटी में दुर्घटनास्थल पर आना-जाना बना रहा.

 

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क्या सिर्फ NHAI ही जिम्मेदार?

दनुआं घाटी का इलाका जंगल से भरा हुआ है. ‘आजतक’ की पड़ताल में यहां आये दिन होने वाली दुर्घटनाओं के पीछे कई कारण सामने आए.

चौपारण से दनुआं होते हुए चोरदाहा तक की दूरी तय करने में वाहन चालकों को अनेक टर्निंग प्वॉइंट से गुजरना पड़ता है. इस इलाके में NH-2 पर अनेक स्थान पर जंपिंग प्वॉइंट है. यहीं सबसे अधिक वाहन दुर्घटनाएं होती हैं.

एक कारण यह भी है कि इस क्षेत्र में जीटी रोड के किनारे वन विभाग की जमीन पर अवैध तौर पर दर्जनों ढाबे-होटल बने हुए हैं, इसकी वजह से सड़क पर रात को वाहनों की कतार लग जाती है.

ये इलाका बिहार की सीमा से सटा हुआ है. बिहार में शराबबंदी होने की वजह से शराब पीने वाले यहां के होटलों का रुख भी करते हैं. नशे में गाड़ी चलाना भी दुर्घटनाओं की वजह बनता है.

 

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