
देवों के देव महादेव की हर बात निराली है. पहनावे से लेकर पूजा तक अलग तरीके से होता है. उनकी तस्वीर में हमने डमरू, त्रिशूल, गले में सांप, वाहन के रूप में नंदी और बाघ की खाल को देखा है. जहां अन्य देवी-देवता वस्त्र और आभूषण पहने नजर आते हैं. वहीं भोले बाघ की खाल लपेटे और भस्म लगाए नजर आते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव बाघ की खाल ही क्यों पहनते हैं. इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है.
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है एक दिन श्री हरि विष्णु ने हिरण्याकश्यप का वध करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया था. नरसिंह अवतार में वे आधे नर और आधे सिंह के रूप में अवतरित हुए थे.
हिरण्याकश्यप का वध करने के बाद नरसिंह बहुत क्रोध में थे. तब भोलेनाथ ने अपने अंश वीरभद्र को उत्पन्न कर वीरभद्र से कहा कि तुम जाकर विष्णु अवतार नरसिंह से निवेदन करो कि वह अपना क्रोध त्याग दे. जब नरसिंह नहीं माने तब वीरभद्र ने शरभ रूप धारण किया.
नरसिंह को वश में करने के लिए वीरभद्र गरुड़, सिंह और मनुष्य का मिश्रित रूप धारण किए और शरभ कहलाए. शरभ ने नरसिंह भगवान को अपने पंजे से उठा लिया और चोंच से वार करने लगे. उनके वार से घायल होकर नरसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया और भगवान शिव से निवेदन किया कि, भगवान शिव अपने आसन के रूप नरसिंह की चर्म को स्वीकार करें.
इसके बाद नरसिंह, भगवान विष्णु के शरीर में मिल गए और भगवान शिव ने इनके चर्म को अपना आसन बना लिया इसलिए भगवान भोलेनाथ बाघ की खाल पर विराजते हैं और यह वजह है कि बाघ की खाल हमेशा भगवान शिव के पास रहती है.