
सुप्रीम कोर्ट ने अयोधया राम मंदिर को लेकर एक बड़ा फैसला लिया हैं। वहीं 70 सालों में लंबित और राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम बाबरी – मस्जिद विवाद पर फैसला आ चुका हैं।
खबरों की माने तो मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ 2.77 एकड़ जमीन को लेकर फैसला सुना रही है। फैसले के जरिए अदालत इस भूमि पर मालिकाना हक तय करेगी।
राम मंदिर फैसला: एक नजर में पढ़िए कि फैसले में क्या क्या बोले CJI रंजन गोगोई
जानिए फैसले में अदालत ने क्या-क्या कहा-
सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड के दावे को किया खारिज। जहां सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज किया। वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) संदेह से परे है और इसके अध्ययन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
देखा जाए तो मामले का फैसला केवल एएसआई के नतीजों के आधार पर नहीं हो सकता है। जमीन पर किसका मालिकाना हक है इसका फैसला कानून के हिसाब से होना चाहिए। वहीं हिंदुओं की यह आस्था और उनका यह विश्वास की भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था इसे लेकर कोई विवाद नहीं है।
हिंदुओं का मानना है कि भगवान राम का जन्म मुख्य गुंबद के नीचे हुआ था। आस्था वैयक्तिक विश्वास का विषय है।
बाबरी मस्जिद का निर्माण खाली जमीन पर नहीं हुआ था। जमीन के नीचे का ढांचा इस्लामिक नहीं था। एएसआई के निष्कर्षों से साबित हुआ कि नष्ट किए गए ढांचे के नीचे मंदिर था।1856-57 में नमाज पढ़ने के सबूत नहीं। 1856 से पहले भी हिंदू मंदिर के अंदर पूजा करते थे।
एएसआई इस बात को साबित नहीं कर पाया है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। मुसलमानों ने 1949 तक यहां नमाज पढ़ी।इस बात के सबूत हैं कि हिंदू अंग्रेजों के आने से पहले से ही राम चबूतरे और सीता रसोई की पूजा किया करते थे। रिकॉर्ड में मौजूद सबूत बताते हैं कि विवादित जमीन के बाहरी हिस्से पर हिंदुओं का कब्जा था।
दरअसल इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मुसलमानों ने मस्जिद को छोड़ दिया था। हिंदू हमेशा से मानते थे कि भगवान राम का जन्मस्थान मस्जिद के आंतरिक प्रांगण में है। यह स्पष्ट है कि मुसलमानों ने आंतरिक आंगन के अंदर प्रार्थना की और हिंदुओं ने बाहरी आंगन में प्रार्थना की।