नई दिल्ली। भारत ने साल 2016 से 2021 के बीच के पांच वर्षो में 6,90,000 टन दालों के उत्पादन के लिए मोजाम्बिक के साथ एक समझौता किया है।
खबर के मुताबिक , मोजाम्बिक के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) देश में दालों की मांग के हिसाब से उनकी पूर्ति के लिए कुछ अफ्रीकी देशों में दालों का उत्पादन बढ़ाने में सहयोग देने के भारत के निश्चय के अनुकूल है।
एमओयू के अनुसार, साल 2016-17 से भारत प्रतिवर्ष 100,000, 75,000, 175,000, 150,000 और 200,000 टन दालों का आयात करेगा।
वित्तीय मुद्दों के उल्लेख किए बिना एमओयू में कहा गया है कि भारत, मोजाम्बिक में दालों के उत्पादन में सहयोग करेगा, दालों के उपभोग को बढ़ावा देगा, किसानों को कृषि सेवाएं उपलब्ध कराएगा, बीजों के अनुसंधान और उत्पादन में सहयोग करेगा और भारत एवं मोजाम्बिक के बीच दालों के व्यापार को बढ़ावा देगा।
भारत का निश्चय केवल खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के निश्चय से ही नहीं जुड़ा है (जिसने साल 2016 को ‘दाल वर्ष’ के रूप में नामित किया है) बल्कि वह कुछ अफ्रीकी देशों में जलवायु परिवर्तन की समस्या दूर करने में भी मदद कर रहा है। यह देश भारत के दाल विकास कार्यक्रम से लाभान्वित हो रहे हैं।
अफ्रीका के लिए भारतीय व्यापार एवं निवेश परियोजना के तहत अन्य लाभार्थी देशों में इथियोपिया, रवांडा, युगांडा और तंजानिया हैं। इस परियोजना का वित्त पोषण ब्रिटेन का अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग करता है और समन्वय का काम जिनेवा स्थित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र (आईटीसी) करता है।
आईटीसी के अनुमान के मुताबिक, भारत में अगले 14 वर्षो तक दालों की मांग प्रति वर्ष 3.2 करोड़ टन बढ़ेगी। यह अनुमान इस आंकड़े पर आधारित है कि देश की जनसंख्या 1.2 अरब से बढ़कर साल 2030 तक 1.4 अरब हो जाएगी।
आईटीसी ने भारत को सातवां बड़ा दाल आयातक देश बताया है जो साल 2004 में 44.6 करोड़ डॉलर मूल्य के दालों का आयात करता था और जो साल 2014 में बढ़कर 2.17 अरब डॉलर मूल्य का हो गया।
एफएओ ने दालों के उत्पादन को एक ऐसी फसल के रूप में बताया है जिसमें विश्व की परिवर्तनशील जलवायु से निपटने के गुण हैं।
एफएओ ने कहा, “जलवायु परिवर्तन का वैश्विक खाद्य उत्पादन और खाद्य सुरक्षा पर एक व्यापक प्रभाव पड़ता है। बदलते मौसम सूखा, बाढ़ और समुद्री तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण बन सकते हैं, जो खाद्य उत्पादन के प्रत्येक स्तर को प्रभावित कर सकते हैं।”
एफएओ ने कहा कि यह तात्कालिक और दीर्घकालिक कदम उठाने की मांग करेगा ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि जलवायु परिवर्तन खास तौर से उन क्षेत्रों और लोगों के लिए कृषि पारिस्थितिकी प्रणालियों पर दबाव नहीं डाल पाए, जो विशेष रूप से अतिसंवेदनशील हैं।
संगठन ने कहा कि दाल उत्पादन अप्रत्यक्ष रूप से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है। विश्व भर में करीब 19 करोड़ हेक्टेयर भूमि में दाल की खेती मिट्टी में करीब 50 से 70 लाख टन नाइट्रोजन उत्पन्न करने में सहायक होती है।