आयन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
शनिवार के दिन तेल मर्दन (मालिश) करने से सुख की प्राप्ति होती है। (मुहूर्तगणपति)
शनिवार के दिन क्षौरकर्म (बाल – दाढी काटने या कटवाने) काटने से आयु क्षीण होती है। (महाभारत अनुशासन पर्व) ‘ब्रह्म पुराण’ के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- ‘मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।’शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय।’ का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है।हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।(पद्म पुराण)
विक्रम संवत् – 2073
संवत्सर – सौम्य तदुपरि साधारण
शक – 1938
अयन – दक्षिणायन
गोल – दक्षिण
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – प्रतिपदा रात्रि 10:36 बजे तक तदुपरांत द्वितीया।
नक्षत्र – पूर्वा भाद्रपद प्रातः 06:51 बजे तक तदुपरान्त उत्तरा भाद्रपद रात्रि 04:41 बजे तक तदुपरान्त रेवती।
योग – गण्ड रात्रि में 11:18 बजे तक तदुपरान्त वृद्धि।
दिशाशूल – शनिवार को पूर्व दिशा और ईशानकोण का दिशाशूल होता है यदि यात्रा अत्यन्त आवश्यक हो तो तिल का सेवनकर प्रस्थान करें।
राहुकाल (अशुभ) – दिन 09:00 बजे से 10:30 बजे तक।
सूर्योदय – प्रातः 05:55।
सूर्यास्त – सायं 06:05।
प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कद्दू/ सीताफल) का सेवन करने से धननाश होता है (ब्रह्मवैवर्त पुराण : ब्रह्मखण्ड )।
पर्व त्यौहार – ललिता देवी यात्रा, विश्वकर्मा पूजा, कन्या राशि में सूर्य की संक्रान्ति पुण्यकाल दिन 09:23 बजे से अपराह्न 03:47 बजे तक
पितृपक्ष प्रारम्भ , प्रतिपदा की श्राद्ध आज है, यह पितृपक्ष 30 सितम्बर 2016 दिन शुक्रवार तक रहेगा। 24 सितम्बर 2016 दिन शनिवार को मातृनवमी रहेगी। 30 सितम्बर 2016 दिन शुक्रवार को महालय (पितृपक्ष ) का समापन अर्थात पितृविसर्जन रहेगा। धर्मशास्त्र में तीन प्रकार के ऋण उल्लिखित हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब पूर्वज भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया। उन्ही पितरों को पितृपक्ष में तिलांजली दी जाती है।पितृपक्ष में मनुष्य को मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन व्यतीत करना चाहिए। एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन्।
यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति। अर्थात् जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। श्राद्ध के पितृतर्पण में गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल विशेष उपयोगी होता है। तुलसी से पितृगण प्रलयकाल तक प्रसन्न और संतुष्ट रहते हैं।श्राद्ध सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र से या पत्तल के प्रयोग से करना चाहिए। श्राद्ध में लोहे का प्रयोग नहीं करना चाहिए। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। थाली में विशुद्ध जल भरकर, उसमें थोड़े काले तिल व दूध डालकर अपने समक्ष रख लेना चाहिए एंव उसके आगे दूसरा खाली पात्र रख लें। तर्पण करते समय दोनों हाथ के अंगूठे और तर्जनी के मध्य कुश लेकर अंजली बना लें अर्थात दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर उस मृत प्राणी का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुये अंजली में भरा हुये जल अंगूठे और तर्जनी के मध्यभाग अर्थात पितृतीर्थ से दूसरे खाली पात्र में तर्पण करना चाहिए। एक-2 व्यक्ति के लिए कम से कम तीन-तीन तिलांजली तर्पण करना चाहिए।
विशेष- पंचक आगामी 18 सितम्बर 2016 दिन रविवार को रात्रि 04:24 बजे तक रहेगा ।
मुहूर्त- शस्त्रघटन मुहूर्त।
लाइव गुरू – बिपिन पाण्डेय