आयन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
शनिवार के दिन तेल मर्दन (मालिश) करने से सुख की प्राप्ति होती है। (मुहूर्तगणपति)
शनिवार के दिन क्षौरकर्म (बाल – दाढी काटने या कटवाने) आयु क्षीण होती है। (महाभारत अनुशासन पर्व)
विशेष – अष्टमी को नारियल खाने से बुद्धिनाश होता है, नवमी को लौकी खाने से सन्तान का। नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
विक्रम संवत् – 2073
संवत्सर – सौम्य तदुपरि साधारण
शक – 1938
अयन – दक्षिणायन
गोल – दक्षिण
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – अष्टमी प्रातः 06:41 बजे तक तदुपरान्त नवमी रात्रि 04:20 बजे तक तदुपरांत दशमी।
नक्षत्र – आर्द्रा रात्रि 07:11 बजे तक तदुपरान्त पुनर्वसु।
योग – वरीयान रात्रि में 11:53 बजे तक तदुपरान्त परिघ।
दिशाशूल – शनिवार को पूर्व दिशा और ईशानकोण का दिशाशूल होता है यदि यात्रा अत्यन्त आवश्यक हो तो तिल का सेवनकर प्रस्थान करें।
राहुकाल (अशुभ) – दिन 09:00 बजे से 10:30 बजे तक।
सूर्योदय – प्रातः 06:00।
सूर्यास्त – सायं 06:00।
पर्व त्यौहार – जीवित पुत्रिका व्रत की पारणा, मातृ नवमी,
विशेष-
- 24 सितम्बर 2016 दिन शनिवार को मातृनवमी श्राद्ध , सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध।
- 25 सितम्बर 2016 दिन रविवार को दशमी श्राद्ध।
- 26 सितम्बर 2016 दिन सोमवार को एकादशी श्राद्ध, इंदिरा एकादशी व्रत।।
- 27 सितम्बर 2016 दिन मंगलवार को द्वादशी श्राद्ध, सन्यासी यतियों की श्राद्ध , एकादशी व्रत की पारणा।
- 28 सितम्बर 2016 दिन बुधवार को त्रयोदशी श्राद्ध , मघा श्राद्ध , प्रदोष व्रत।
- 29 सितम्बर 2016 दिन गुरूवार को चतुर्दशीश्राद्ध , शस्त्रया आकष्मिक मृत लोगो की श्राद्ध का दिन।
- 30 सितम्बर 2016 दिन शुक्रवार को अमावस्या, सर्वपैत्री अज्ञात तिथि के लोगो की श्राद्ध, पितृ विसर्जन।
धर्मशास्त्र में तीन प्रकार के ऋण उल्लिखित हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब पूर्वज भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया। उन्ही पितरों को पितृपक्ष में तिलांजली दी जाती है।
पितृपक्ष में मनुष्य को मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन व्यतीत करना चाहिए।
एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन्।
यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।
अर्थात् जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। श्राद्ध के पितृतर्पण में गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल विशेष उपयोगी होता है। तुलसी से पितृगण प्रलयकाल तक प्रसन्न और संतुष्ट रहते है
श्राद्ध सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र से या पत्तल के प्रयोग से करना चाहिए। श्राद्ध में लोहे का प्रयोग नहीं करना चाहिए। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। थाली में विशुद्ध जल भरकर, उसमें थोड़े काले तिल व दूध डालकर अपने समक्ष रख लेना चाहिए एंव उसके आगे दूसरा खाली पात्र रख लें। तर्पण करते समय दोनों हाथ के अंगूठे और तर्जनी के मध्य कुश लेकर अंजली बना लें अर्थात दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर उस मृत प्राणी का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुये अंजली में भरा हुये जल अंगूठे और तर्जनी के मध्यभाग अर्थात पितृतीर्थ से दूसरे खाली पात्र में तर्पण करना चाहिए। एक-2 व्यक्ति के लिए कम से कम तीन-तीन तिलांजली तर्पण करना चाहिए।
मुहूर्त-
शनिवार के दिन पीपल वृक्ष का स्पर्श करने से ग्रहजन्य पीड़ा समाप्त होती है। (ब्रहा पुराण अध्यय-118)
शनिवार के दिन “ॐ नमः शिवाय” का 108 बार जप करने से ग्रहदोषों के प्रभाव शान्त होता है. (ब्रह्मा पुराण)
शनिवार के दिन पीपालके पेड़ में जल चढ़ाने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। (पद्म पुराण)
शनिवार के दिन पीपल के बृक्ष के नीचे 100बार गायत्री मंत्र का जप करने से भौतिक रोग और अभिचार जनित रोगों से मुक्ति मिलती है। (श्री देवी भागवत)
लाइव गुरू – बिपिन पाण्डेय