16 की उम्र और सॉफ्टवेयर कंपनी में सीईओ !

राहुल डॉमिनिकजिस तरह से कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता ठीक उसी तरह किसी बड़ी सफलता को हासिल करने के लिए किसी शख्स की छोटी या बड़ी उम्र उसके हौसले के आगे मायने नहीं रखती। मायने रखता है तो उसका अपने काम को लेकर जूनून। उचाईयों को पाने का पागलपन और आगे बढ़ने की चाह। शायद ये राहुल डॉमिनिक का जूनून और पागलपन ही रहा होगा कि जिस उम्र लोग स्कूल जाते, खेलते और मौज मस्ती करते हैं, मात्र 16 साल की उस उम्र में राहुल एक सॉफ्टवेयर कम्पनी में सीईओ कि कुर्सी हासिल कर चुके हैं।

राहुल डॉमिनिक एक मिसाल

राहुल डॉमिनिक विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं और अपने बेडरूम से एक कंपनी का संचालन करते हैं। इतनी छोटी सी उम्र में एक कंपनी के सीईओ की सफलता किसी भी उम्र के उद्यमी के लिये एक मिसाल है।

राहुल डॉमिनिक खिलौनें से खेलने की उम्र में कंप्यूटर पर काम करना और नौ या दस साल की उम्र तक आते-आते प्रोग्रामिंग करना सीख गए थे।

राहुल का कहना है कि बचपन से ही वे अपने पिता को कंप्यूटर पर काम करते हुए देखते थे। राहुल बताते हैं उस समय वे उस काम के बारे में अधिक नहीं समझते थे लेकिन स्क्रीन पर जो भी दिखता था वह उन्हें मोहित कर देता था। उनके पिताजी ने हमेश उनकी शंकाओं का समाधान किया और कभी राहुल को कंप्यूटर का इस्तेमाल करने से मना नहीं किया।

बचपन से ही घर में कंप्यूटर का इस्तेमाल करने की आजादी मिलने से राहुल को इसके बारे में सीखने में काफी मदद मिली। ऐसा नहीं कि राहुल ने गलतियां नहीं की।

जब वे करीब 4 साल की उम्र के थे तब वे अपनी माँ के साथ उनकी एक की एक दोस्त, जो सन माइक्रोसिस्टम के आईटी विभाग में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का काम करती थीं से मिलने गए।

उन दिनों वे एक प्रोग्राम तैयार करने में लगी हुई थीं और 18 घंटो की कोडिंग की मेहनत कंप्यूटर पर खुली हुई थी। राहुल डॉमिनिक की माँ और उनकी मित्र तो कॉफ़ी पीने चले गए और राहुल उस कमरे में कंप्यूटर के साथ अकेले रह गए। राहुल उस समय के बारे में बताते हुए कहते हैं कि मुझे ठीक से तो याद नहीं कि मैंने क्या किया लेकिन मैंने जो किया वो देखने के बाद मेरी माँ की दोस्त बेहोश होते-होते बचीं। पता नहीं कैसे राहुल ने उनकी 18 घंटों की मेहनत को डिलीट कर दिया।

10 साल की उम्र में राहुल ने प्रतिष्ठित एनआईआईटी में ‘सी’ प्रोग्रामिंग सीखने के लिये दाखिला लिया। शौकिया तौर पर प्रोग्रामिंग करना शुरू करने के बाद लगभग 12 साल की उम्र में उन्हें पहली बार व्यवसाईक तौर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला।

उस समय उनके पिता ने एक फाईनेंशियल परामर्श कंपनी की नींव डाली और मैंने उनसे इस कंपनी की वेबसाइट तैयार करने के लिये कहा। मेरे पिता ने मुझे खुशी-खुशी मुझे अपनी नई कंपनी की वेबसाइट डिजाइन करने का मौका दिया।

एक बहुत पुरानी कहावत है ‘‘आवश्यकता अविष्कार की जननी है’’। बीते वर्ष राहुल डॉमिनिक और उनके एक मित्र स्कूल से एक दिन के अवकाश पर रहे और तब उन्हें महसूस हुआ कि दूसरो से नोट्स इकट्ठे करना और हर विषय का होमवर्क लेना कितना मुश्किल काम है। इस परेशानी से रूबरू होने के बाद मैंने विद्यर्थियों की इस मुश्किल को हल करने की दिशा में काम करना शुरू किया और जल्द ही अपने सबसे महत्वाकांक्षी और सफल प्रोजेक्ट ‘‘वियर्डइन’’ के साथ सामने था।

राहुल आगे बताते हैं कि ‘‘वियर्डइन’’ के इस्तेमाल को लेकर उन्होंने 300 अध्यापकों के के बीच एक सर्वेक्षण करवाया जिसके नतीजे काफी चैंकाने वाले रहे। इस सर्वेक्षण में करीब 86 प्रतिशत शिक्षकों ने इसे बहुत उपयोगी बताया। ‘‘हर किसी ने ‘‘वियर्डइन’’ को लेकर काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। अबतक सिर्फ एक ही बात ऐसी है जो नकारात्मक रही है और वो हे इसकी कीमत। हम लोग इस दिशा में भी काम कर रहे हैं और जल्द ही ‘‘वियर्डइन’’ सबकी जेब की पहुंच में होगा। ’’

‘‘वियर्डइन’’ को तैयार करने के पीछे मेरा मुख्य मकसद छात्रों को इंटरनेट पर ही कक्षा के जैसा माहौल देना है। इसकी सहायता से वे इंटरनेट पर अपनी पढ़ाई-लिखाई से संबंधित जानकारियों इत्यादि को दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं और घर बैठे भी पढ़ाई कर सकते हैं।

एक तरफ तो राहुल अपने दोस्तों की पढ़ाई में ‘‘वियर्डइन’’ की मदद से सहायता कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वे आम लोगों की मदद करने के लिये भी प्रयास कर रहे हैं। इसी दिशा में उन्होंने एक ऐप तैयार किया है जिसका नाम उन्होंने ‘‘वेरीसेफ’’ रखा है। यह एक वेब आधारित सुविधा है जिसकी मदद से आप देश या दुनिया के किसी भी कोने के मुख्य शहरों के सुरक्षित होने के विषय में जानकारी ले सकते हैं। आसान शब्दों में कहें तो आप किसी भी बड़े शहर में जाने से पहले वहां के हालात और माहौल के बारे में सावधान हो सकते हैं। ‘‘इस ऐप में आप किसी भी बड़े शहर में होने वाली आपराधिक घटनाओं के बारे में जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा इसमें आपको हर जगह के इमरजेंसी फोन नंबरों की डायरेक्ट्री भी मिलेगी जो किसी आकस्मिक स्थिति में आपका साथ देगी।’’ अंत में राहुल यह बताना नहीं भूलते कि यह ऐप आप बिना कोई कीमत चुकाए इंटरनेट से ले सकते हैं।

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