भारत की एनएसजी सदस्यता पर चीन और अमेरिका फिर आमने-सामने

एनएसजी में भारतवाशिंगटन| एनएसजी में भारत की सदस्यता को लेकर अमेरिका और चीन खुल कर आमने-सामने आ गये हैं| अमेरिका ने दोबारा से एनएसजी के सभी सदस्य देशों से सिओल में होने वाली बैठक के दौरान भारत को समर्थन देने की अपील की है| इससे पहले चीन ने एक बयान जारी कर कहा था कि सिओल में होने वाली एनएसजी की बैठक में भारत की सदस्यता प्रमुख मुद्दा नहीं है|

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने कहा है कि हमारा मानना है कि भारत सदस्यता के लिए तैयार है| हम बैठक में भाग लेने वाले सभी देशों से अपील करते हैं कि वे एनएसजी की पूर्ण बैठक में भारत के आवेदन को समर्थन दें|

उधर, चीन ने एक बार फिर एनएसजी में भारत की राह में रोड़े अटकाने की कोशिश की है| चीन ने एनएसजी की बैठक में भारत की सदस्यता के मुद्दे को ही खारिज कर दिया है| परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की बैठक शुक्रवार (24 जून) से सियोल में होनी है| इस बैठक में 28 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं|

यह भी पढ़ेंएनएसजी पर भारत की राह में चीन बना रोड़ा

एनएसजी में भारत

चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनइंग ने कहा है कि एनएसजी में गैर-एनपीटी देशों की इंट्री को लेकर मतभेद बने हुए हैं| मौजूदा परिस्थितियों में हम आशा करते हैं कि एनएसजी ग्रुप सलाह-मशविरे पर आधारित फैसला करने के लिए विस्तृत चर्चा करेगा।’

यह भी पढ़ें भारत की एंट्री रोकने के लिए एक हुए चीन और PAK

हुआ ने कहा, ‘सियोल में एनएसजी की प्रमुख बैठक के एजेंडे में भारत को इस प्रतिष्ठित क्लब में शामिल करने का मसला शामिल नहीं है’। इससे पहले रविवार को ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बताया था कि एनएसजी में भारत के प्रवेश को लेकर कोई बाधा नहीं है।

अहम बैठक से पहले मिलेंगे मोदी और जिनपिंग

24 जून को होने वाली एनएसजी की प्रमुख बैठक है। इससे एक दिन पहले उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर सकते हैं| उम्मीद की जा रही है कि मोदी भारत की एनएसजी सदस्यता का मुद्दा उठाएंगे।

इसलिए विरोध में है चीन

इस प्रतिष्ठित समूह में चीन भारत का विरोध कर रहा है| चीन को डर है कि अगर भारत मेंबर बना तो साउथ एशिया में भारत का दबदबा काफी बढ़ जाएगा। भारत को हमेशा अपने से कम आंकने वाला चीन उसे अपने बराबर नहीं देखना चाहता।

पड़ोस में अमेरिकी दखल बढ़ना भी चीन को खल रहा है| चीन के साथ न्यूजीलैंड, आयरलैंड, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रिया इसमें भारत के प्रवेश के पक्षधर नहीं हैं।

अमेरिका मदद में

एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत को अमेरिका से काफी मदद मिली है| अमेरिका ने अन्य सदस्यों को पत्र लिखकर 24 जून को सिओल में भारत को समर्थन देने का अनुरोध किया है| इसके पीछे अमेरिका की डिप्लोमेसी और ट्रेड पॉलिसी है। वह भारत को चीन की बराबरी पर लाना चाहता है।

भारत की परेशानी

भारत एनएसजी में प्रवेश के लिए समूह के सदस्य देशों से संपर्क साध रहा है। एनएसजी आम-सहमति के सिद्धांत के तहत काम करता है और भारत के खिलाफ एक भी देश का वोट उसके प्रयास को बाधित कर सकता है।

यहां वीटो का प्राविधान नहीं है। लेकिन एनएसजी में आम सहमति के बिना कोई भी नया सदस्य नहीं बनाया जा सकता। इसलिए चीन का मानना जरूरी है।

एनपीटी जरूरी नहीं

फ्रांस जब एनएसजी का सदस्य बना था तब उसने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए थे। इसी तरह, जापान इसका फाउंडर मेंबर है और उस समय उसने भी एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए थे। साथ ही अर्जेंटीना और ब्राजील भी बिना एनपीटी पर साइन किए जुड़े थे। इस कारण यह ज़रूरी नहीं|

ये होगा फायदा

अगर भारत को एनएसजी मेंबरशिप मिल जाती है तो इससे उसका रुतबा बढ़ जाएगा। ये न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप वर्ष 1974 में भारत के एटमी टेस्ट के बाद ही साल 1975 में बना था। यानी जिस क्लब की शुरुआत भारत का विरोध करने के लिए हुई थी, अगर भारत उसका मेंबर बन जाता है तो ये उसके लिए एक बड़ी कामयाबी होगी।

LIVE TV