एनएसजी पर भारत की राह में चीन बना रोड़ा

एनएसजी पर भारतविएना। ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में 48 सदस्यीय एनएसजी की दो दिवसीय बैठक गुरुवार को शुरू हुई| इस बैठक का मुख्या उद्देश्य एनएसजी पर भारत के आवेदन पर विचार करना है| बैठक में ज्यादातर देश भारत की दावेदारी के प्रति सकारात्मक नजर आए लेकिन चीन ने एक बार फिर इसका विरोध किया है।

एनएसजी पर भारत

सूत्रों की मानें तो अमेरिकी समर्थन मिलने से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता के लिए भारत को ज्यादातर सदस्य देशों से भी सकारात्मक संकेत मिले हैं| वहीँ, चीन भारत की सदस्यता का विरोध करने वाले देशों की अगुवाई कर रहा है। तुर्की, न्यूजीलैंड, आयरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रिया चीन के रुख का समर्थन कर रहे हैं|

इससे एक दिन पहले ही अमेरिका दौरे के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मेक्सिको की यात्रा पर गए थे। मोदी को एनएसजी सदस्यता के मुद्दे पर मेक्सिको का समर्थन भी हासिल हुआ।

लेकिन चीन एनएसजी में भारत की सदस्यता का अब भी विरोध कर रहा है। उसका कहना है कि सिर्फ परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत करने वाले देशों को ही एनएसजी की सदस्यता मिलनी चाहिए।

चीन का कहना है कि यदि रियायत देकर भारत को एनएसजी की सदस्यता दी जाती है तो पाकिस्तान भी इसका  हकदार है| इसके चलते अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने पत्र लिखकर एनएसजी के सभी सदस्य देशों से अपील की है कि इस महीने सोल में होने वाली एनएसजी की बैठक में उन्हें भारत को शामिल करने पर आम राय बनानी चाहिए|

भारत को फायदा

  • अगर भारत को एनएसजी की सदस्यता मिलती है तो सबसे बड़ा फ़ायदा उसे ये होगा कि उसका रूतबा बढ़ जाएगा|
  • भारत एनएसजी की सदस्यता इसलिए भी चाहता है कि वो अन्य सदस्य देशों के साथ मिलकर परमाणु मसलों पर नियम बना सके|
  • न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप वर्ष 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद ही साल 1975 में बना था| यानी जिस क्लब की शुरुआत भारत का विरोध करने के लिए हुई थी, अगर भारत उसका मेंबर बन जाता है तो ये उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी|
  • भारत ये चाहता है कि उसे एक परमाणु हथियार संपन्न देश माना जाए| सिर्फ़ परमाणु अप्रसार संधि ये कहती है कौन देश परमाणु हथियार संपन्न है और कौन नहीं|

क्या हैं दिक्कतें

  • एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत का एनपीटी पर हस्ताक्षर करना ज़रूरी है| भारत को एक ग़ैर परमाणु हथियार संपन्न देश के रूप में इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना होगा, जो कि भारत को स्वीकार्य नहीं है|
  • इस बात को लेकर ही चीन सिद्धांतों का हवाला देते हुए भारत का विरोध करता है| चीन का कहना है कि अगर सिर्फ भारत के लिए इन विशेष नियमों में बदलाव किया जाता है तो पाकिस्तान भी इसका हकदार होगा|
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