भगवान शिव भस्‍मासुर से बचकर यहां छुपे थे, विष्णु ने की थी रक्षा

 भगवान शिव

गुजरात में नर्मदा नदी के किनारे बने औघड़दानी भगवान शिव के अद्भुत और चमत्कारी मंदिर में महादेव धनेश्वर और लुकेश्वर नामक दो रुपों में विराजित हैं। यहां उनके प्रिय नंदी की भी दो प्रतिमाएं हैं जो एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। माना जाता है कि जो व्यक्ति भगवान शिव के इन दो रुपों के दर्शन कर लेता है उसे सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मान्यता के अनुसार स्वयं धन के देवता कुबेर ने धनेश्वर महादेव की स्थापना करवाई थी। जब रावण ने कुबेर से सोने की लंका को छीन लिया तो उन्होंने लंका को पुन: प्राप्त करने के लिए भोलेनाथ की तपस्या की थी। भगवान शंकर के उसी स्वरुप को धनेश्वर नाम से जाना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। धनेश्वर महादेव के समीप विराजमान लुकेश्वर महादेव का मंदिर भी उतना ही पुराना है।

लुकेश्वर महादेव से संबंधित कथा

पौराणि‍क कथा के अनुसार भस्मासुर नाम के राक्षस ने भगवान शंकर को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर उनसे वरदान प्राप्त किया था कि वह जिस के भी सिर पर अपना हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। वरदान पाने के उपरांत महादेव पर उसका परीक्षण करने हेतु उनके पीछे दौड़ा।

भस्मासुर से भयभीत होकर भगवान शिव नर्मदा के किनारे झाड़ियों में जाकर छिप गए थे। उस समय भोलेनाथ की सहायता के लिए विष्णु भगवान ने स्त्री रूप लेकर धोखे से भस्मासुर को नृत्य करवाते-करवाते उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया और वह भस्म हो गया था। भगवान शिव को वहां आकर लुकना अर्थात छिपना पड़ा था जिसके कारण उनका नाम लुकेश्वर महादेव पड़ गया।

भगवान शंकर के इन दो रुपों के चमत्कार का अनुभव उनके मंदिर में जाने के बाद ही किया जा सकता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां आने पर शांति का अनुभव होता है और भोलेनाथ सुखी जीवन का वरदान देते हैं। यहां ब्राह्मणों को भोजन करवाने से प्रत्येक प्रकार के पितृदोषों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव के इन रुपों के प्रताप और चमत्कारों की गाथा दूर-दूर तक फैली है। यहां आकर श्रद्धालु अपनी चिंताओं को भूलकर सुख का अनुभव करते हैं।

 

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