सिद्ध कुंजिका स्‍त्रोत केे नियमित पाठ से पूरी होगी हर मनोकामना

सिद्ध कुंजिका स्‍त्रोत सृष्टि का आधार मा़ है। हिन्‍दू ही नहीं दुनिया के हर धर्म में मां को सर्वोपरि माना गया। यह भी सही है कि बच्‍चा पिता या अन्‍य की अपेक्षा मां के सामने ज्‍यादा सहज होता है। हमारे जीवन में जो भूमिका हमारी जननी की होती है ठीक वही भूमिका इस समस्‍त सृष्टि की जननी मां जगदम्‍बा की है। वर्तमान समय में सभी लोग पर काम का दबाव बना रहता है। कई बार हम चाह कर भी पूजा पाठ नहीं कर पाते हैं। लेकिन एक उपाय है जो जिसके करने में ज्‍यादा समय भी नहीं लगेगा और हर वह मनोकामना पूरी होगी जो आप चाहते हैं। वह है मां दुर्गा का सिद्ध कुंजिका स्‍त्रोत

इसका महात्‍म बताते हुए भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का जो फल है वह सिर्फ कुंजिकास्तोत्र के पाठ से प्राप्त हो जाता है। कुंजिकास्तोत्र का मंत्र सिद्ध किया हुआ इसलिए इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। जो साधक संकल्प लेकर इसके मंत्रों का जप करते हुए दुर्गा मां की आराधना करते हैं मां उनकी इच्छित मनोकामना पूरी करती हैं। इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कुंजिकास्तोत्र के मंत्रों का जप किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करना चाहिए। किसी को क्षति पहुंचाने के लिए कुंजिकास्तोत्र के मंत्र की साधना करने पर साधक का खुद ही अहित होता है।

सिद्ध कुंजिका स्‍त्रोत  

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

 ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः

ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।”

“नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥

धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे॥

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

सिद्ध कुंजिका स्‍त्रोत के लाभ

नियमित कुंजिका स्‍त्रोत का पाठ करने से रोजी रोजगार में किसी तरह की रुकावट नहीं आती है।

घर में रोगों से बचाव होता है और घर के बीमार लोग ठीक हो जाते हैं।

अभीष्‍ठ की प्राप्ति हो जाती है।

किसी भी ग्रह का कोई भी बुरा प्रभाव नहीं होता

अच्‍छे लोगों का साथ मिलने लगता है

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