भोपाल में सिमी आतंकियों से मुठभेड़ पर उठे सवाल

भोपाल में सिमी आतंकियोंभोपाल: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सिमी आतंकियों से मुठभेड़ पर उठे सवाल उठने लगे हैं। केंद्रीय जेल से फरार होने के कुछ ही घंटों के भीतर प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के आठ आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया जाना और इसको लेकर पुलिस द्वारा दिया जा रहा ब्योरा सवालों के घेरे में है।

मुठभेड़ को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, उनका पुलिस और सरकार की ओर से कोई संतोषजनक जवाब न आने से सवाल उठाने वालों की बात को बल मिल रहा है।

सोमवार को सिमी के आठ आतंकवादियों के केंद्रीय जेल में एक प्रहरी रमाशंकर की गला रेतकर हत्या कर फरार होने की खबर आई और कुछ ही घंटों बाद पता चला कि राजधानी के अचारपुरा के मडीखेड़ा पठार पर सभी आठों आतंकी पुलिस मुठभेड़ में मार दिए गए।

सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान से लेकर भोपाल के पुलिस महानिरीक्षक योगेश चौधरी तक ने पुलिस कार्रवाई का ब्योरा दिया। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि यह सफलता जनता के सहयोग से मिली।

वहीं, चौधरी ने कहा कि आतंकियों और पुलिस के बीच हुई क्रॉस फायरिंग में आठों आतंकी मारे गए। इससे पहले गांव वालों ने कहा और पुलिस के हवाले से बताया गया कि आतंकियों ने पुलिस पर पथराव किया, जिसके जवाब में पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें सभी आतंकी मारे गए।

सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (नवनियुक्त मुख्य सचिव) बसंत प्रताप सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि आतंकियों की योजना फुलप्रूफ थी, उन्होंने भागने के लिए दिवाली का मौका चुना।

सिंह की बात अगर सही है, तो फिर सवाल उठता है कि जब योजना इतनी फुलप्रूफ थी तो आतंकी पैदल चलकर जंगल में क्यों गए, जबकि भागने के कई दूसरे रास्ते भी थे।

इतना ही नहीं, सरकार की ओर से दिए जा रहे तर्को पर भरोसा किया जाए तो एक बात जरूर सामने आती है कि आतंकियों के कपड़े कैसे बदल गए, क्योंकि आतंकी जीन्स, टीशर्ट और आकर्षक शर्ट पहनने हुए थे। उनके पास स्पोर्ट्स शूज कैसे आ गए। योजनाबद्ध तरीके से वारदातों को अंजाम देने वाले आतंकी एक साथ कैसे रहे।

सवाल उठ रहा है कि आतंकी अपनी बैरक से बाहर कैसे आए, इस पर राज्य के प्रमुख सचिव (जेल) विनोद सेमवाल का कहना है कि यह जेल से जुड़े लोगों की मिलीभगत के बगैर संभव हो नहीं सकता। आशय साफ है कि आतंकी जेल के अफसरों की मदद से फरार हुए।

वहीं दूसरी ओर, एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें पुलिस का जवान एक आतंकी की जेब से चाकू निकालते देखा जा रहा है।

उधर, गांव वालों ने बताया कि आतंकी पहाड़ी पर थे और पथराव कर रहे थे। उनके हाथ में डंडा भी था। गांव वालों ने उन्हें कोई आग्नेय हथियार चलाते नहीं देखा।

गांव के मुकेश कुमार ने आतंकियों को देखे जाने की पुष्टि करते हुए कहा कि वे पहाड़ी पर थे और दो उंगलियों से ‘विक्टरी’ का निशान दिखाते हुए खुशी मना रहे थे। उनके पास डंडे, पत्थर व एक चाकू था, जिसे वे दिखा भी रहे थे।

मुठभेड़ में मारे गए आतंकी जाकिर के भाई एजाज ने कहा कि आठ लोग एक साथ कैसे मारे जा सकते हैं? वे भागकर अलग-अलग दिशाओं में जा सकते थे, आठों एक साथ कैसे थे। इस मामले की पूरी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

विपक्ष ने भी मुठभेड़ पर सवाल उठाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि आतंकियों का फरार होना राज्य की जेलों की सुरक्षा को उजागर कर दिया है। यह पहली बार नहीं हुआ है, इससे पहले खंडवा से भी सिमी के आतंकी फरार हुए थे। यह पूरी तरह प्रदेश की कानून व्यवस्था से जुड़ा हुआ है।

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव बादल सरोज ने पुलिस की कहानी पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि अचारपुरा के जंगल में आतंकियों के ‘मुठभेड़’ में मारे जाने की घटना एक अत्यंत फूहड़ तरीके से गढ़ी गई कहानी प्रतीत होती है। आतंकियों के पास दो कट्टे और चाकू मिलने की कहानी भी मुठभेड़ को ‘संदिग्ध’ मानने के लिए काफी है।

माकपा ने जेल से भागने से लेकर कथित मुठभेड़ तक के पूरे मामले की जांच हाईकोर्ट के जज से कराने की मांग की है। पार्टी का कहना है कि एनआईए की जांच के बहाने राज्य सरकार अपनी नाकामी छुपाना चाहती है।

तमाम सवालों पर पानी डालते हुए राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि जो मारे गए, वे खूंखार आतंकी थे, सभी के लिए खतरा थे। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

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