‘निजी फायदे के लिए राममंदिर का राग अलाप रहे वसीम रिजवी’

मंदिर-मस्जिदनई दिल्ली। मंदिर-मस्जिद विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने कोशिशों में लगे शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी पर ही मुस्लिम पक्षकारों ने सवाल खड़े कर दिए हैं। अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड शुरू से ही पैरवी कर रहा है। बोर्ड की तरफ से मसौदा भी कोर्ट के अधीन रखा जा चुका है, जिसमें शिया वक्फ बोर्ड ने विवादित जगह पर राम मंदिर बनने की बात कही है साथ ही मस्जिद को लखनऊ में बनाने की बात कही है, जिसका नाम ‘मस्जिद-ए-अमन’ रखा जाए।

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लेकिन शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के इस बात से मुस्लिम पक्षकार सहमत नहीं हैं। मुस्लिम पक्षकार के मुताबिक शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी होने और निजी फायदे के लिए राममंदिर का राग अलाप रहे हैं।

वहीँ मुस्लिम पक्षकारों ने साफ़ कर दिया है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ही आदर्श फैसला होगा। इसके अलावा कोई और बात करना निराधार है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही इस मसले का हल है- खालिक

अयोध्या मामले में अपीलकर्ता मौलाना महफुजुर्ह रहमान के नामित खालिक अहमद खान ने कहा कि राममंदिर बनाई जाए हमें कोई हर्ज नहीं है, लेकिन वो अपनी जगह बनाई जाए न की बाबरी मस्जिद की जगह पर, जैसा कि वसीम रिजवी कह रहे हैं कि मस्जिद कहीं और बनेगी तो वह बाबरी मस्जिद का रिप्लेसमेंट नहीं हो सकता है।

खालिक के मुताबिक, ‘ये मसौदे वसीम रिजवी की अपनी राय है, जिसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है। मुस्लिम पक्षकारों की एक राय शुरू से सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही इस मसले का हल है’।

निजी फायदे के लिए राममंदिर का राग अलाप रहे रिजवी- इकबाल अंसारी

अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकार हासिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी ने वसीम रिजवी के रवैये पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि वसीम रिजवी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं, उससे बचने के लिए राम मंदिर की बात कर रहे हैं।

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उन्होंने कहा कि वसीम रिजवी बीजेपी का दिल जीतने के लिए सारे जतन कर रहे हैं और वैसे भी अयोध्या मामले में वसीम रिजवी का कोई सीधा जुड़ाव नहीं है। ऐसे में वसीम रिजवी की बातें कोई अहमियत नहीं रखती है।

इकबाल के मुताबिक, मेरा मानना है कि कोर्ट आस्था के आधार पर नहीं बल्कि तथ्यों और सबूतों के आधार पर फैसला करेगा।

फिरंगी महली ने भी उठाये मसौदे पर सवाल

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि हाईकोर्ट ने 1947 में फैसला करके साफ कर दिया है कि बाबरी मस्जिद शिया वक्फ बोर्ड का नहीं बल्कि सुन्नी वक्फ बोर्ड का है। इसलिए शिया वक्फ बोर्ड के मसौदे की कोई अहमियत नहीं रहती है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा वो मान्य होगा।

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इससे दोनों समुदाय के पक्षकारों को माननी चाहिए। कोर्ट के फैसला के बाद हमेशा के लिए इस मसले का हल हो जाएगा और इस मुद्दे पर हमेशा के लिए सियासत भी खत्म हो जाएगी। हम सभी को कोर्ट के फैसले का इंतजार है।

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