रविवार को खुला रहता है यह इस्लामिया स्कूल, शिक्षकों को नहीं उर्दू का ज्ञान

रिपोर्ट- दिलीप कटियार

फर्रूखाबाद। इस्लामिया स्कूलों पर योगी सरकार के कड़े ऐतराज के बावजूद शमसाबाद का प्राइमरी स्कूल शुक्रवार को बंद रहने के बाद  इतवार को पूरे समय खुला। जिलाधिकारी और बेसिक शिक्षा अधिकारी को साफ़ कह दिया है कि उनके जिले में इस्लामिया स्कूल तुरंत बंद होने चाहिए। इसके बावजूद अधिकारी शासन का संकेत मानने को तैयार नहीं हैं। सांसद ने बेसिक शिक्षा अधिकारी से खंड शिक्षा अधिकारी के निलंबन की सिफारिश कर दी है। शमसाबाद के इस इस्लामिया स्कूल में अधिकाँश समय उर्दू की ही पढ़ाई कराई जाती है। यहाँ तक कि स्कूल में केवल मुस्लिम छात्र पढ़ते हैं।

रविवार को खुला रहता है इस्लामिया स्कूल

बेसिक शिक्षा अधिकारी समेत अन्य अधिकारियों का प्राइमरी स्कूल के नाम पर इस्लाम प्रेम महँगा पड़ सकता है। जिले के तीन-चार  प्राइमरी स्कूलों को इस्लामिया स्कूल का दर्जा दिए जाने की जानकारी होते ही बेसिक शिक्षा अधिकारी को यह साफ़ कर दिया था कि यह खेल तुरंत  बंद हो जाना चाहिए। क्योंकि धर्म और मजहब के नाम पर सरकारी शिक्षा का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।

यदि सरकारी शिक्षा पर इस्लामिया का ठप्पा लगाया जाता है तो सिख, बौद्ध और जैन भी इसी रास्ते पर जाने को तैयार हो सकते हैं। सांसद की इस नाराजगी पर अधिकारियों ने हां में हाँ भी मिला दी थी। पर इस इतवार को शमसाबाद का इस्लामिया स्कूल पूरे दिन खुला, यह पढ़ाई पिछले जुमे को छुट्टी की ऐबज में रखी गयी।  शमसाबाद का इस्लामिया स्कूल स्वतंत्रता से पहले यानी 1917 से चल रहा है।

स्कूल के पास शुरुआत से अब तक के सारे रिकार्ड भी सुरक्षित हैं। इस स्कूल में 150 बच्चे पंजीकृत हैं, सभी बच्चे मुस्लिम हैं। दूसरे समाज के बच्चे यहाँ एडमीशन लेने के लिए आते ही नहीं। हालाँकि प्रधानाध्यापक अमित गर्ग ने बताया कि उन्हें और सहायक अध्यापिका अर्चना देवी को भी उर्दू की जानकारी नहीं है। शिक्षामित्र गाज़िया सुल्ताना सभी कक्षाओं में बच्चों को उर्दू की तालीम देती हैं। प्रधानाध्यापक अमित गर्ग ने बताया कि वह 2015 से इस विद्यालय में हैं। यहाँ शुक्रवार को स्कूल बंद रहता है और इतवार को खुला रहता है।

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उपस्थिति रजिस्टर में भी शुक्रवार के दिन लाल रंग के पेन से फ्राई डे लिख कर छुट्टी दिखाई जाती  है।  सियासी और तालीमी मामलों में दखल रखने वाले मौलाना एजाज़ नूरी ने कहा कि यह स्कूल इस्लामियां हैं ही नहीं इसलिए इन स्कूलों को इस्लामिया का नाम नहीं दिया जाना चाहिए। सरकार के पैसे से जो स्कूल चल रहा है वह इस्लामिया हो ही नहीं सकता। जो स्कूल सरकारी पैसे से चल रहा है वह किसी खास मजहब के लिए नहीं हो सकता।

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