सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के नए संविधान के मसौदे को दी मंजूरी

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को अपने ही ‘एक राज्य एक वोट’ के आदेश को संशोधित करते हुए गुजरात, महाराष्ट्र राज्यों से जुड़े सौराष्ट्र, वडोदरा, मुंबई और विदर्भ क्रिकेट संघों के वोटिंग अधिकारों को बहाल करते हुए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के लिए नए संविधान को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही न्यायालय ने रेलवे, ट्राई सर्विसेज और भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ के लिए पूर्ण स्थाई सदस्यता दी है।

सुप्रीम कोर्ट

न्यायालय ने इन क्रिकेट निकायों के ऐतिहासिक अस्तित्व और योगदान का भी हवाला दिया। न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है, “इन संघों का भारत में क्रिकेट की प्रतिभाओं को उभारने का लंबा इतिहास रहा है। इन संघों ने उन खिलाड़ियों को दिया है जिन्होंने राष्ट्र और देश का नाम रोशन किया है।”

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इससे पहले, सर्वोच्च अदालत ने अपने 18 जुलाई 2016 और 24 जुलाई 2017 के आदेश में कहा था कि वो अपने ‘एक राज्य, एक वोट’, चयन समिति के विस्तार देने के फैसले पर दोबारा विचार करने को तैयार है।

सर्वोच्च अदालत की पीठ ने कहा कि, “हमने सभी हितधारकों को सुना है ताकि अदालत के पास एक सम्पूर्ण परिपेक्ष्य हो। इसका मकसद बीसीसीआई के संविधान को फाइनल करना है जिसमें लोढ़ा समिति की सिफारिशों को शामिल किया जाए। वहीं साथ ही इन्हें लागू करने पर भी हमारा ध्यान है।”

न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड ने कहा कि प्रत्येक पदाधिकारी को लगातार दो पदों के बाद तीन साल के कूलिंग ऑफ पीरियड से गुजरना होगा न कि एक साल के।

उन्होंने कहा, “एक अधिकारी जो राज्य संघ या बीसीसीआई में लगातार दो बार एक पद पर चुना गया है वह तीसरी बार कूलिंग ऑफ पीरियड के बिना चुनाव में खड़े नहीं हो सकेंगे। कूलिंग ऑफ पीरियड के दौरान अधिकारी गर्वनिंग काउंसिल या बीसीसीआई तथा राज्य संघ में किसी पद पर काम नहीं कर सकेंगे।”
पीठ ने कहा, “कोई भी शख्स बीसीसीआई में नौ साल के बाद किसी पद पर बने नहीं रह सकता।”

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अदालत ने साथ ही राज्य क्रिकेट संघों से भी बीसीसीआई के संविधान को 30 दिन के भीतर लागू करने और इस बारे में प्रशासकों की समिति (सीओए) को अवगत कराने को कहा है। साथ ही राज्य क्रिकेट संघों को आदेश का पालन न करने पर सख्त कार्रवाई करने की चेतावनी दी है।

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