व्यापम घोटाले से जुड़े मानहानि मामले में शिवराज को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की याचिका

भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले से बड़ा झटका लगा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के परिवार की व्यापम घोटाले में संलिप्तता के आरोपों पर सरकार की ओर से प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा के खिलाफ दायर मानहानि याचिका पर जिला अदालत व उच्च न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को खारिज कर दिया।

व्यापम घोटाले

मिश्रा ने कहा, “प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज द्वारा राज्य सरकार की ओर से मेरे विरुद्ध किए गए मानहानि के मुकदमे में जिला अदालत द्वारा दो साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माना के फैसले और इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश रंजन गोगोई व न्यायाधीश आऱ भानुमति की युगल पीठ ने खारिज कर दिया है।”

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मिश्रा के मुताबिक, उन्होंने व्यापम घोटाले में मुख्यमंत्री के परिवार की संलिप्तता का आरोप लगाया था। इस पर सरकार ने मानहानि की याचिका जिला अदालत में दायर की थी। जिला अदालत ने 17 नवंबर, 2017 को उन्हें सुनाई दो साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस पूरे प्रकरण को ही खारिज कर दिया।

उन्होंेने ने कहा, “यह फैसला मुख्यमंत्री शिवराज और उनके उन मैनेजरों के लिए अब और अधिक घातक साबित होगा, जिन्होंने साजिश रचकर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मेरे संघर्ष और जुबान को बंद करने का दुस्साहस किया था। मुझे इस बात का पूर्ण विश्वास है कि आने वाले दिनों में व्यापम महाघोटाले के अब तक बचे हुए अन्य बड़े मगरमच्छ भी जल्द ही शिकंजे में जकड़े जाएंगे।”

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मिश्रा ने कहा, “भ्रष्टों के खिलाफ मेरे संघर्ष की धार अब और तेज होगी। सत्य की जीत की यह शुरुआत है। झूठ की बुनियाद पर टिकी इमारत अब ढहने जा रही है।” वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने ट्वीट किया, “झूठ की उम्र बहुत कम होती है, जीत हमेशा सत्य की होती है।”

सर्वोच्च न्यायालय में मिश्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा, क़े टी़ एस़ तुलसी, इंदिरा जयसिंह, दुष्यंत दवे, अजय गुप्ता, वैभव श्रीवास्तव एवं रविकांत पाटीदार ने पैरवी की, जबकि राज्य सरकार की ओर से एटार्नी जनरल क़े क़े वेणुगोपाल, मुकुल रोहतगी और प्रदेश के महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने पैरवी की।

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