दिल्ली के सरकारी स्कूलों की शिक्षण पद्धति में आया क्रांतिकारी बदलाव, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

नई दिल्ली। रिक्शाचालक रोशन लाल (40) ने जिस समय दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में अपने बेटे राकेश का दाखिला करवाया था, उस समय उनकी बस एक ही तमन्ना थी -उनके बेटे को अच्छी शिक्षा मिले। मगर वह निजी स्कूल की पढ़ाई का खर्च वहन कर नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि सरकारी स्कूल में आखिर कुछ तो पढ़-लिख लेगा।

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लेकिन आज वह खुद को खुशकिस्मत समझते हैं कि सरकारी स्कूल में बेटे का दाखिला करवाना उनका अच्छा फैसला था। राकेश अब छठी कक्षा में है और वह अपनी पढ़ाई में बेहतर कर रहा है। यहां तक कि रोशन को भी बेटे से कुछ खीखने को मिल जाता है।

रोशन को इस बात का गर्व है कि उनके बेटे के शिक्षक (अध्यापक/अध्यापिका) विदेशों से प्रशिक्षण लेकर आए हैं।

दिल्ली के एक हजार से अधिक सरकारी स्कूलों के शिक्षकों और प्राचार्यो को अब तक प्रशिक्षण के लिए सिंगापुर और फिनलैंड भेजा जा चुका है। शिक्षण पद्धति में अन्वेषण के लिए ये देश काफी चर्चित हैं।

अनेक लोगों का मानना है कि इस कदम से शिक्षण पद्धति में सुधार के साथ-साथ सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा रही है।

सरकारी स्कूल अब तक खराब और पुरानी शिक्षण पद्धति के लिए बदनाम रहे हैं, जहां रटंत विद्या की परिपाटी रही है। मगर, इस प्रशिक्षण से शिक्षकों के शिक्षण कौशल में विकास हुआ है और वे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अद्यतन अनुसंधान से रूबरू हुए हैं।

रोशन ने कहा, “मुझे अपने बेटे से मालूम हुआ कि उसके शिक्षक प्रशिक्षण के लिए विदेश जा रहे हैं। मैं खुश हू कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।”

उन्होंने कहा, “हमारे जैसे लोग निजी स्कूलों में अपने बच्चे को नहीं पढ़ा सकते हैं। इसलिए यह जानकर अच्छा लगा कि सरकारी स्कूल भी अब निजी स्कूलों का मुकाबला कर रहा है। हमारे बच्चे अच्छे अध्यापकों के मार्गदर्शन में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। निजी स्कूलों के अध्यापक तो ऐसे विदेश नहीं जाते हैं।”

दिल्ली के कई सरकारी स्कूलों की दीवारों का रंग-रोगन हो चुका है और इनकी बुनियादी संरचना किसी निजी स्कूल से कम नहीं है। यही नहीं, इनके पाठ्यक्रम में भी बदलाव हुआ है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 40 अध्यापकों और शिक्षाविदों की एक टीम ने करीब छह महीने में ‘हैप्पीनेस करिकुलम’ बनाया है।

इस पाठ्यक्रम के अलावा, नर्सरी से लेकर कक्षा सात तक छात्रों के लिए 45 मिनट का ‘हैप्पीनेस पीरियड’ होगा, जिसमें योग, कथावाचन, प्रश्नोत्तरी सत्र, मूल्य शिक्षा और मानसिक कसरत शामिल हैं।

लक्ष्मीनगर की छोटी-सी दुकान के मालिक राजू यादव शिक्षकों के प्रशिक्षण पर ध्यान देने की बात से काफी उत्साहित हैं।

राजू ने कहा, “मेरे घर में न तो मैं पढ़ा-लिखा हूं और न ही मेरी पत्नी और हम अपने बच्चे के लिए ट्यूशन क्लास का भी खर्च वहन नहीं कर सकते। मेरी बेटी स्वाती एक सरकारी स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ती है। यह अच्छी बात है कि शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। शिक्षक जितना जानेंगे वे उतने ही बेहतर ढंग से पढ़ाएंगे और हमारे बच्चे भी अच्छी तरह सीख पाएंगे।”

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 2015 में सत्ता में आने पर शिक्षा में सुधार को प्राथमिकता दी गई। स्कूलों में वर्ग-कक्ष से लेकर खेल का मैदान और तरणताल जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ शिक्षकों के कौशल विकास पर ध्यान दिया गया।

दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया हमेशा शिक्षा-प्रणाली में सुधार की आवश्यताओं की बात करते रहे हैं। उन्होंने अपने पहले बजट भाषण में दिल्ली सरकार का शिक्षा बजट दोगुना करते हुए कहा, “शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किया जाने वाला धन खर्च नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की भलाई के लिए किया जाने वाला निवेश है।”

सरकारी स्कूलों

सिसोदिया के अनुसार, सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने का लक्ष्य बुनियादी सुविधाओं में सुधार और शिक्षकों की नियुक्ति भर से पूरा नहीं होता है।

उन्होंने कहा, “शैक्षणिक सुधार की प्रक्रिया मुख्य रूप से शिक्षकों के क्षमता निर्माण पर निर्भरत करती है। इसलिए सरकार हार्वर्ड, कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसे श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में शिक्षकों और प्राचार्यो को प्रशिक्षण प्रदान करेगी।”

सबसे पहले 200 शिक्षकों के समूह ने विदेशों में प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिन्हें सरकार ने मेंटॉर टीचर (परामर्शदाता अध्यापक/अध्यापिका) कहा। इसका मकसद दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शैक्षणिक व अकादमिक क्षमताओं को बढ़ाकर 45,000 करने में उनकी रचनात्मक विशेषज्ञता का लाभ उठाना था।

प्रत्येक परामर्शदाता शिक्षक ने मुंबई, बेंगलुरू, जयपुर, अहमदाबाद और सिंगापुर में प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद उन्हें पांच-छह स्कूलों में शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का कार्य सौंपा गया। पिछले दो साल में इन 200 परामर्शदाता शिक्षकों ने हजारों शिक्षकों को प्रशिक्षित किया है।

मनु गुलाटी पिछले साल अगस्त में प्रशिक्षण के लिए सिंगापुर गई थीं और वह अब एक मेंटॉर टीचर हैं। उन्होंने बताया कि वह अब बेहतर प्रदर्शन कर उत्साहित महसूस कर रही हैं।

गुलाटी ने बातचीत में कहा, “आमतौर पर यह महसूस किया जाने लगा है कि प्रशिक्षण पर निवेश कर सरकार ने शिक्षकों पर भरोसा जताया है।” मनु गुलाटी ने 2011 में अध्यापिका के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी।

मेधा परासर एक अन्य मेंटॉर टीचर हैं, जो मुंबई से प्रशिक्षण लेकर आई हैं। उन्होंने कहा, “शिक्षण के केंद्र में अब शिक्षक नहीं, बल्कि छात्र हैं। शिक्षण अब यांत्रिक नहीं, बल्कि संवादपरक हो गया है।”

परासर 27 साल से स्कूल में पढ़ा रही हैं। उन्होंने कहा, “विविध प्रशिक्षण के माध्यम से हमने कक्षा में पढ़ाने की 45 पद्धतियां सीखी हैं और अब हम इनमें से किसी का भी उपयोग कर सकते हैं।”

परासर ने कहा कि शिक्षण प्रणाली में आए बदलाव स्पष्ट दिखने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। उन्होंने कहा, “छोटे बच्चों की जहां तक बात है तो रातोंरात कोई बदलाव नहीं आ सकता है। समय के साथ परिवर्तन दिखेगा।”

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