देश के बड़े बैंक ने रखी रिसर्च रिपोर्ट, चौंकाने वाले खुलासे से RBI की भी निकली आंखें

नकदीमुंबई: नोटबंदी के बाद देश भर में नकदी की जबरदस्त किल्लत थी। हर जगह हाहाकार मचा हुआ था।  लोग अपना ही पैसा लेने के लिए कई दिन लाइन में लगे। इसके बाद भी इतना पैसा नहीं मिलता था कि जरूरतें पूरी हो जाएं।

नकदी की दिक्कत होने के कारण नोटों की छपाई सैन्य स्तर पर हो रही थी। यहां तक की नोटों को वायुसेना के विमानों से देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाया जा रहा था। जबकि रिजर्व बैंक ने 2 हजार रुपए के 2.46 लाख करोड़ रुपए छाप कर रखे थे जो जारी ही नहीं किए।

एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट ने रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट और संसद में पेश आंकड़ों की तुलना करने के बाद ये आशंका जताई है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आठ दिसंबर तक उच्च मूल्य के कुल 15,78,700 करोड़ रुपये की नकदी छापी थी, लेकिन उसमें से 2,46,300 करोड़ रुपये की नकदी बाजार में जारी ही नहीं की गई। सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने बुधवार को यह जानकारी दी।

सरकार और आरबीआई के आंकड़ों के आधार पर एसबीआई ने अपने शोध पत्र ‘क्या 2,000 रुपये के उच्च मूल्य के नोट को वापस रखा गया?’ में कहा कि पिछले साल की गई नोटबंदी के बाद इस साल आठ दिसंबर तक 2,46,300 करोड़ रुपये मूल्य के उच्च मूल्य वाले नोटों को प्रचलन में भेजा ही नहीं गया।

एसबीआई की मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) सौम्य कांति घोष ने एसबीआई इकोफ्लैश रिपोर्ट में कहा, “वित्त मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, आरबीआई ने आठ दिसंबर तक 500 रुपये के कुल 1695.7 करोड़ नोट और 2,000 रुपये के कुल 365.4 करोड़ नोट छापे थे। इन नोटों का कुल मूल्य 15,787 अरब है।”

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2017 के मार्च तक छोटे मूल्य के कुल 3,50,100 करोड़ नोट प्रचलन में थे।

एसबीआई ने कहा, “इसका तात्पर्य यह है कि आठ दिसंबर तक उच्च मूल्य के सभी नोटों का मूल्य 13,324 अरब था। इसका मतलब यह है कि आरबीआई ने 2,463 अरब के उच्च मूल्य को नोट को बाजार में भेजे ही नहीं।”

रिपोर्ट में कहा गया, “इसका तार्किक कारण यह है कि नोटबंदी के बाद लोगों को उच्च मूल्य वाले नोट को भंजाने में परेशानी हो रही थी, इसलिए हो सकता है कि आरबीआई ने जानबूझकर 2,000 रुपये के नोट की छपाई बंद कर छोटे नोटों की शुरू कर दी और प्रचलन में उच्च मूल्य के नोटों को नहीं भेजा।”

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में प्रचलन में जितने नोट हैं, उनमें छोटे मूल्य के नोट की हिस्सेदारी 35 फीसदी है।

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