प्रधानमंत्री मोदी का कड़ा संदेश: ट्रंप के टैरिफ हमले के बीच भारत किसानों के हितों के लिए भारी कीमत चुकाने को तैयार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि भारत अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी क्षेत्र के हितों से कोई समझौता नहीं करेगा, भले ही इसके लिए भारी आर्थिक कीमत चुकानी पड़े।

नई दिल्ली में एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए, मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया टैरिफ को प्रत्यक्ष जवाब दिया, जो भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद और कृषि क्षेत्र की सुरक्षा नीतियों के जवाब में लगाए गए हैं।

टैरिफ विवाद का पृष्ठभूमि

6 अगस्त 2025 को ट्रंप ने भारतीय आयात पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाने का आदेश दिया, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया—किसी भी देश पर अमेरिका द्वारा लगाया गया सबसे ऊँचा टैरिफ। यह कदम 30 जुलाई को घोषित 25% टैरिफ के बाद उठाया गया, जो 7 अगस्त से लागू हुआ। यह टैरिफ भारत की रूसी तेल खरीद और कृषि व डेयरी बाजारों को खोलने से इनकार करने की सजा के रूप में देखा जा रहा है। 27 अगस्त को दूसरा टैरिफ लागू होगा, जब तक कि दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता में कोई प्रगति नहीं होती।

ट्रंप ने भारत की रूस के साथ तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद को लेकर नाराजगी जताई है। भारत प्रतिदिन 17.5 लाख बैरल रूसी तेल आयात करता है, जो इसके कुल तेल आयात का 35% से अधिक है। ट्रंप ने भारत पर “रूसी युद्ध मशीन को बढ़ावा देने” का आरोप लगाया, जबकि भारत का कहना है कि उसकी खरीद वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में मदद करती है, जैसा कि 2022 में अमेरिका और जी7 देशों ने प्रोत्साहित किया था।

मोदी का कड़ा रुख

सम्मेलन में पीएम मोदी ने कहा, “हमारे लिए हमारे किसानों का हित सर्वोपरि है। भारत कभी भी अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगा। मुझे पता है कि इसके लिए हमें भारी कीमत चुकानी होगी, और मैं इसके लिए तैयार हूँ। भारत इसके लिए तैयार है।” यह बयान भारत के उस रुख को दर्शाता है कि वह अपने 45% कार्यबल को समर्थन देने वाले कृषि क्षेत्र की रक्षा के लिए अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।

मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देते हुए लोगों से स्वदेशी उत्पाद खरीदने की अपील की। 2 अगस्त को उत्तर प्रदेश की एक रैली में उन्होंने कहा, “वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता का माहौल है। अब हमें जो भी खरीदना है, वह भारतीयों के पसीने से बना होना चाहिए।”

रूसी तेल आयात का तर्क

भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश, अपनी 90% ऊर्जा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। 2022 में यूक्रेन संकट के बाद रूस ने सस्ता तेल उपलब्ध कराया, जिससे वह भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि जी7 की कीमत सीमा के तहत ये आयात वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में मदद करते हैं। विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी टैरिफ को “अनुचित, अन्यायपूर्ण और अनुचित” करार दिया, यह बताते हुए कि अमेरिका और यूरोपीय संघ भी रूस के साथ व्यापार करते हैं—2024 में अमेरिका-रूस व्यापार 3.5 अरब डॉलर और यूरोपीय संघ-रूस व्यापार 67.5 अरब यूरो का रहा।

आर्थिक प्रभाव

50% टैरिफ भारत के 55% निर्यात, जैसे कपड़ा, रत्न-आभूषण, ऑटो पार्ट्स, समुद्री भोजन, और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को प्रभावित करेगा, जो एमएसएमई क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) ने टैरिफ को “बेहद चौंकाने वाला” बताया, अनुमान लगाया कि अमेरिका को भारत के निर्यात में 40-50% की कमी आ सकती है। 2024 में भारत का अमेरिका को निर्यात 87 अरब डॉलर था। फार्मास्यूटिकल्स और स्मार्टफोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स अभी टैरिफ से छूट प्राप्त हैं, लेकिन ट्रंप ने फार्मा पर अलग टैरिफ की धमकी दी है। 5 अगस्त को भारतीय रुपये में 0.17% और बीएसई सेंसेक्स में 0.38% की गिरावट देखी गई।

राजनीतिक और भू-राजनीतिक प्रभाव

टैरिफ ने भारत-अमेरिका संबंधों को हाल के वर्षों के सबसे निचले स्तर पर ला दिया है। फरवरी 2025 में मोदी की ट्रंप के साथ व्हाइट हाउस में मुलाकात के बाद यह तनाव अप्रत्याशित है। ट्रंप ने भारत की अर्थव्यवस्था को “मृत” और भारत पर अमेरिकी आव्रजन प्रणाली को “ठगने” का आरोप लगाया, जिससे भारतीय नेताओं में नाराजगी है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मोदी की “हगलोमेसी” की आलोचना की, जबकि राहुल गांधी ने टैरिफ को “भारत को ब्लैकमेल करने की कोशिश” बताया। बीजेपी नेता मनीष तिवारी ने ट्रंप के बयानों को भारत की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला करार दिया।

भारत की रणनीति

भारत ने रूसी तेल आयात को तत्काल रोकने के संकेत नहीं दिए हैं। हालाँकि, इंडियन ऑयल कॉर्प जैसे कुछ सरकारी रिफाइनरियों ने हाल ही में अमेरिका, कनाडा, और मध्य पूर्व से 70 लाख बैरल तेल खरीदा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत मध्य पूर्वी तेल आपूर्ति पर विचार कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक अनुबंधों के कारण रूस से तेल खरीद में तत्काल कमी संभव नहीं है। विदेश मंत्रालय ने संभावित जवाबी टैरिफ का संकेत दिया है, लेकिन ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अजय श्रीवास्तव ने छह महीने तक जवाबी कार्रवाई से बचने की सलाह दी है।

भारत का गैर-गठबंधन नीति पर जोर देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमारे विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध अपने आप में महत्व रखते हैं।”

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