#NiceAttack : इस खूबसूरत शहर ने कभी सपने में भी नहीं देखा था ऐसा कत्लेआम

नीसदिल्ली | फ्रांस के नीस शहर का नाम है नीस ला बेला, जिसका अर्थ है नीस द ब्यूिटीफुल . दरअसल,समुद्र के किनारे बसा यह शहर अपने प्राकृतिक सुंदरता के लिए काफी मशहूर है. नीस में हर साल करीब 40 लाख सैलानी घूमने आते हैं । इस खूबसूरत में लोग जब नेशनल डे पर हो रही आतिशबाजी का लुत्फ़ उठा रहे थे तभी लोगों की भीड़ में अचानक एक ट्रक घुसा और लोगों को रौंदता चला गया. पहले तो किसी को कुछ समझ नहीं आया लेकिन आस-पास पड़ी लाशों ने बयां कर दिया कि चंद महीनों के अंदर ही फ्रांस फिर आतंकी हमले का शिकार हो गया है.

सुबह तक आतंकी सगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) ने हमले की जिम्मेदारी ले ली. इस हमले में 84 लोगों की मौत हुई और 150 लोग घायल हुए. नीस के इस हमले की खबरें आईएस के समर्थक अपनी वेबसाइट पर साझा कर रहे हैं और इसे अपनी फतह बता रहे हैं.
हर आतंकी हमले की तरह राहत और बचाव काम के साथ निंदा का दौर शुरू हुआ. आतंक को ख़त्म करने की बातें जोर पकड़ने लगी. कभी आईएस के लिए संजीवनी बने अमेरिका ने भी इसका विरोध किया.

राष्ट्र पति पद के संभावित रिपब्लिकन उम्मीकदवार डोनाल्ड ट्रंप ने यहाँ तक कहा कि अगर वे राष्ट्र पति बनते हैं तो वे कांग्रेस से इस्लािमिक स्टेमट के खिलाफ जंग की घोषणा करने को कहेंगे. ये सब बातें पहले भी कही जाती रही हैं. विश्व के सभी ताकतवर और छोटे देश आतंक के खात्मे की बात तो करते हैं लेकिन आतंक की यह समस्या ख़त्म होने के बजाय और भी बड़ा रूप लेती जा रही है.

45 साल बाद फ्रांस को मिला नीस
फ्रांस के इस शहर पर पहले कई देशों का अधिकार रहा । फिर कई साल तक सेवॉय ने इस पर अधिकार जताया । इसके बाद 1792 से 1815 तक यह फ्रांस का हिस्साक रहा। फिर बाद में इसे पीडमोंट-सार्डिनिया को दे दिया गया । 1860 में 45 सालों के बाद यह वापस फ्रांस को मिल गया ।
दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है आईएस
पिछले 18 महीनों से यूरोप में लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं। अभी मार्च में आतंकियों ने ब्रसेल्स को दहला दिया था। इस्तांबुल और ढाका में भी आतंकियों ने कहर बरपाया था।

फ्रांस में व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हमले के बाद पिछले नवंबर में पेरिस में 130 लोग मारे गए थे। यह भी इस्लामिक स्टेट की करतूत थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फ्रांस की सरजमीं पर यह सबसे भीषण तबाही थी।

ऐसा माना जा रहा है कि ये हमले सीरिया और इराक में फ्रांस, अमेरिका और रूस के द्वारा किये जा रहे हमलो के विरोध में हो रहे हैं. ये खबरें पहले ही आ चुकी हैं कि जब से फ्रांस, अमेरिका, रूस के हवाई और जमीनी हमलों के बाद सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट को पीछे हटना पड़ा है, तबसे उसने अपने तमाम समर्थकों से कहा है कि हर हाल में दुनियाभर में हमले तेज किये जाएं.

इस बाबत आईएस सीरिया में लड़ रहे करीब 22,000 विदेशी लड़ाकों को स्वदेश लौटकर हर जगह तबाही मचाने को कह चुका है. पूरी दुनिया में इस वक्त ISIS की चर्चा है. आखिर ये IS या ISIS है क्या? कहां से आया, क्यों आया, किसकी वजह से आया और इसे कौन लाया?

क्या है आईएस
एक लंबी लड़ाई के बाद अमेरिका इराक को सद्दाम हुसैन के चंगुल से आजाद करा चुका था. आजादी को हासिल करने के दौरान इराक पूरी तरह बर्बाद हो चुका था. अमेरिकी सेना के इराक छोड़ते ही बहुत से छोटे-मोटे गुट अपनी ताकत की लड़ाई शुरू करने लगे.

उन्हीं में से एक था अल-कायदा की इराक विंग का चीफ रह चुका अबू बकर अल बगदादी. वो 2006 से ही इराक में अपनी जमीन तैयार करने में लगा था. मगर तब ना उसके पास पैसे थे, ना कोई मदद और ना ही लड़ाके.

दरअसल अमेरिकी सेना 2011 में जब इराक से लौटी, तब इराक में बर्बादी का मंजर था. सद्दाम मारा जा चुका था. इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से तबाह हो चुका था. इराक में सत्ता की बागडोर किसी के भी हांथ में नहीं थी. संसाधनों की कमी और बदहाली झेल रहे बगदादी के लिए ये गोल्डन चांस था. उसने अल-कायदा (इराक) का नाम बदला और आईएसआई यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक अपने अस्तित्व में आ गया.
बगदादी ने सद्दाम हुसैन की सेना के कमांडर और सिपाहियों को अपने साथ मिला लिया. इसके बाद उसने पुलिस, सेना के दफ्तर, चेकप्वाइंट्स और रिक्रूटिंग स्टेशंस को बनाना शुरू किया. अब तक बगदादी के साथ कई हजार लोग शामिल हो चुके थे, पर फिर भी बगदादी को इराक में वो कामयाबी नहीं मिल रही थी. इराक से मायूस होकर बगदादी ने सीरिया का रुख करने का फैसला किया.

सीरिया तब गृह युद्ध झेल रहा था. अल-कायदा और फ्री सीरियन आर्मी वहां के दो सबसे बड़े गुट थे, जो सीरियाई राष्ट्रपति से मोर्चा ले रहे थे. जून 2013 को फ्री सीरियन आर्मी के जनरल ने पहली बार सामने आकर दुनिया से अपील की थी कि अगर उन्हें हथियार नहीं मिले तो वो बागियों से अपनी जंग एक महीने के अंदर हार जाएंगे.

इस अपील के हफ्ते भर के अंदर ही अमेरिका, इजराइल, जॉर्डन, टर्की, सऊदी अरब और कतर ने फ्री सीरियन आर्मी को हथियार, पैसे, और ट्रेनिंग की मदद देनी शुरू कर दी. इन देशों ने बाकायदा सारे आधुनिक हथियार, एंटी टैंक मिसाइल, गोला-बारूद सब कुछ सीरिया पहुंचा दिया.

आतंकी हमलों का अर्थव्यवस्थाी पर असर
हमें यह भी गौर करना चाहिए कि चाहे आतंकी अपनी कोशिशों में नाकाम भले ही हो जाएं, पर देशों और महाद्वीपों पर इसका असर भीषण होता है. यह महज संयोग नहीं है कि अमेरिका की आर्थिक वृद्धि की मंद रफ्तार और यूरोप के आर्थिक संकटों की शुरुआत 9/11 के आतंकी हमले और जॉर्ज बुश के अफगानिस्तान व इराक पर एकतरफा हमले के बाद ही शुरू हुई.

इन युद्धों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ लाद दिया और वह 2008 की वैश्विक मंदी में तेजी से पहल करने के काबिल नहीं बचा. अगर आज यूरोप और खासकर फ्रांस आतंकियों के निशाने पर हैं तो तय जानिए कि यूरोप की आर्थिक बहाली जल्दी नहीं होने वाली है.
‘ब्रेक्जिट’ से कहीं ज्यादा आतंकवाद आज आर्थिक बहाली के लिए बड़ा खतरा है. एक अध्ययन के मुताबिक 9/11 के बाद अमेरिका की आतंकवाद विरोधी जंग में 2011 तक 3.3 खरब डॉलर यानी अमेरिका की मौजूद जीडीपी का करीब पांचवां हिस्सा खप गया.

अमेरिकी दांव पड़ा उल्टा
आईएसआईएस के जन्म के पीछे जाने-अनजाने अमेरिका का ही हाथ रहा. ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका की मदद की वजह से ओसामा बिन लादेन और अल-कायदा का जन्म हुआ. ठीक वैसे ही जैसे 1980 में ईरान के खिलाफ इस्तेमाल के लिए केमिकल हथियार देकर अमेरिका ने सद्दाम को सद्दाम हुसैन बनाया. ठीक वैसे ही जैसे सीरिया के फ्रीडम फाइटर को अमेरिका ने हथियार और ट्रेनिंग दी और अब वही फ्रीडम फाइटर आईएसआईएस के बैनर तले लड़ रहे हैं.

इस शहर में रहते हैं करीब 2 हजार भारतीय
गौरतलब है कि पिछले साल नवंबर में पेरिस में हुए आतंकी हमले में 130 लोगों की मौत हो गई थी और आज नीस में हुए आतंकी हमले में 84 लोगों की मौत हो गई हैं । अनुमान के मुताबिक इस शहर में करीब 2 हजार भारतीय भी रहते हैं ।

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