पेट दर्द को न करें इग्नोर, अनदेखी दे जाएगी सबसे ‘मंहगी’ बीमारी
लखनऊ। पित्ताशय के कैंसर को ज्यादातर रोगी और डॉक्टर तब जान पाते हैं, जब वह पित्ताशय में पैदा होकर आसपास के इलाकों में फैल चुका होता है। इसके बाद यह रोगी में लक्षण पैदा करता है और तब जांचों के दौरान इसका पता चलता है। कई बार जांचों में भी धोखा होता है और ऑपरेशन के दौरान इसके बारे में सर्जन जान पाते हैं।
शुरू में लक्षणहीन रहना और बाद में ऐसे लक्षण पैदा करना, जो बड़े सामान्य से हैं। यही वे वजहें हैं कि रोगी और डॉक्टर भी भ्रमित होते हैं। पेट में गैस, भारीपन, कमजोरी, भूख न लगना और फिर पीलिया जैसे लक्षणों के कारण रोगी डॉक्टर के पास पहुंचते हैं और फिर आगे रहस्य खुलता है।
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पित्ताशय का कैंसर उत्तर भारत में अधिक देखने को मिलता है। और सच यह है कि इसकी रोकथाम के लिए हम बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। इस कैंसर से जुड़े ज्यादातर कारण मनुष्य की रोकथाम से परे हैं। लेकिन एक बात है जिस पर ध्यान दिया जा सकता है। पित्ताशय के कैंसर का सम्बन्ध पित्त की पथरियों से भी होता है।
हालांकि पथरियां बहुत देखने को मिलती हैं और उनकी तुलना में कैंसर बहुत कम, लेकिन पथरियों के विषय में लोग कुछ रोकथाम के कदम उठा सकते हैं। नित्य व्यायाम द्वारा वजन न बढ़ने देना और रिफाइंड भोजन न करना इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
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साथ ही अगर एक बार वजन बढ़ गया है, तो उसे शीघ्रता से घटाना भी पित्ताशय में पथरियां पैदा कर सकता है। इसलिए वजन आहिस्ता से कम किया जाए। पित्ताशय की पथरियों के कारण जब लक्षण उत्पन्न होते हैं, तो डॉक्टर पित्ताशय निकालने की सलाह देते हैं। इसका कारण यह है कि पित्ताशय निकाल देने के बाद इस कैंसर से भी व्यक्ति को सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है।
चूंकि पित्ताशय की पथरी बहुत देखने को मिलती हैं और पित्ताशय-कैंसर की प्रचलन-दर बहुत कम, इसलिए सभी पथरी वाले रोगियों के पित्ताशय नहीं निकाले जाते। पेट में पैदा होने वाले लक्षणों को नजरअंदाज न करते हुए संतुलित व्यायाम और आहार के साथ जीवन जीना ही इस घातक रोग से बचने का सरल तरीका है।