न गांधी ‘राष्‍ट्रपिता’ हैं, न भगत सिंह ‘शहीद’

नई दिल्ली। देश के सम्मान की जब बात होती है तो हमारे अल्फाज़ बदल जाते हैं, सीना चौड़ा हो जाता है। देश के हर नागरिक को गर्व होता है कि आजादी में महात्मा गांधी और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों का नाम शामिल है। उसी सम्मान में हम गांधी जी को ‘राष्‍ट्रपिता’ और भगत सिंह को ‘शहीद’ की उपाधि देते हैं। लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं कि ये सबसे बड़ा झूठ है। हमारी सरकार भगत सिंह को शहीद और गांधी जी को महात्मा नहीं मानती है।

ये जानकारी केंद्र सरकार से प्राप्त सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत ज्ञात हुई है। सोमवार को महात्‍मा गांधी की 148वीं जयंती है। उन्‍हें कल हर कोई राष्‍ट्रपिता बताते हुए श्रद्धांजलि देगा। लेकिन आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आजादी के 70 साल बाद भी आधिकारिक रूप से उन्‍हें यह दर्जा नहीं दिया गया है। यह जनता की मान्यता और प्रेम मात्र है।

राष्‍ट्रपिता

हरियाणा के मेवात निवासी राजुद्दीन जंग ने जुलाई 2012 में प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई के माध्यम से पूछा था कि मोहनदास करमचंद गांधी को देश-विदेश में किन-किन नामों से जाना जाता है। राष्‍ट्रपिता, महात्‍मा, बापू आदि नाम कैसे पड़े।

राजुद्दीन का कहना है कि पीएमओ ने यह आरटीआई संस्‍कृति मंत्रालय को ट्रांसफर कर दिया। वहां से जवाब आया कि ‘मंत्रालय के दस्‍तावेजों को जांचने के बाद पता चला है कि महात्‍मा गांधी को राष्‍ट्रपिता की उपाधि नहीं दी गई, तथा इसे देने संबंधित कोई सबूत उपलब्‍ध नहीं है’। सरकारी रिकॉर्ड में मोहनदास करमचंद गांधी नाम उपलब्‍ध है।

महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहने की नहीं दी सरकार ने मान्यता, तो किसने दी?

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सबसे पहले 1944 में एक रेडियो संबोधन में गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहा था। हालांकि तारीख को लेकर विवाद है। बताया गया है कि 4 जून 1944 को बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुये गांधी को ‘देश का पिता’ कहकर संबोधित किया था।

इसके बाद 6 जुलाई 1944 को उन्‍होंने रेडियो सिंगापुर से एक संदेश प्रसारित करते हुए गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया। 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या होने के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर राष्ट्र को संबोधित किया और कहा कि ‘राष्ट्रपिता अब नहीं रहे’। गांधी को सबसे पहले सुभाषचंद्र बोस ने ‘राष्ट्रपिता’ कहा था।

महात्मा गांधी

गांधी को सबसे पहले महात्मा किसने कहा, इसे लेकर भी विवाद है। आमतौर पर यह बताया जाता है कि 12 अप्रैल, 1919 को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्हें ‘महात्मा’ का संबोधन किया था। जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने सबसे पहले उन्‍हें महात्‍मा नाम से संबोधित किया।

सरकारी रिकॉर्ड में शहीद नहीं हैं भगत सिंह

सरकारी दस्‍तावेजों में भगत सिंह शहीद नहीं, सरकार ऐसा नहीं मानती। इसका खुलासा भी आरटीआई में हुआ। अप्रैल 2013 में केंद्रीय गृह मंत्रालय में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लेकर एक आरटीआई डाली गई। जिसमें पूछा गया कि भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को शहीद का दर्जा कब दिया गया। यदि नहीं तो उस पर क्या काम चल रहा है? इस पर नौ मई को गृह मंत्रालय का जवाब आया कि इस संबंध में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है।

इसी सवाल पर 2016 में प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई डाली गई। अक्‍टूबर 2016 में फिर वही जवाब आया। पीएमओ ने आरटीआई गृह मंत्रालय को रेफर कर दी। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस बारे में उसके पास कोई रिकार्ड नहीं है।  यह हाल तब है जब मामला राज्‍यसभा में उठने के बाद 19 अगस्‍त 2013 को सरकार ने सदन में कहा था कि वह भगत सिंह को शहीद मानती है। रिकॉर्ड सुधारने का वादा किया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं।

महात्मा गांधी

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