भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाई अंतरिक्ष ईंट,सस्ती टेक्नोलॉजी से बनेंगे घर!

मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्ती बसाने की दिशा में वैज्ञानिक लगातार प्रयास कर रहे हैं| यह आज भी एक बड़ा सवाल बना है| अगर इंसान वहां पर बस जाते हैं, तो आखिर कैसे रहेंगे? इसी दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी ढूंढ निकाली है,जिसके ज़रिये इस ईंट को बनाने के लिए मंगल की सिमुलेंट सॉयल (MSS) यानी प्रतिकृति मिट्टी और यूरिया का इस्तेमाल किया गया है। ऐसी ईंट न सिर्फ टिकाऊ (Special Brick For Mars) होगी, बल्कि मार्स की जलवायु के लिए भी परफेक्ट रहेगी| इससे मंगल ग्रह पर इंसानों को बसाने में मदद मिल सकती है।

वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया आधारित टेक्नोलॉजी मदद से अंतरिक्ष ईंटों को बनाया है। उन्होंने सबसे पहले मंगल की मिट्टी, स्पोरोसारसीना पेस्टुरी नाम के बैक्टीरिया, ग्वार गम, यूरिया और निकल क्लोराइड को एक साथ मिला लिया। इसी मिक्सचर से मजबूत ईंट ढालकर तैयार की जाएगी, जो मंगल ग्रह (Life on Mars) पर बनने वाले घरों के लिए परफेक्ट होगी|

भारतीय वैज्ञानिकों का कारनामा

यह खास ईंट ISRO और IISc  के वैज्ञानिकों ने साथ मिलकर साल 2020 के अगस्त में विक्सित की थीं| रिसर्चर्स का कहना है कि चांद की ईंट बनाने के लिए जिस प्रोसेस का इस्तेमाल हुआ था, वह केवल बेलनाकार (सिलेंड्रिकल) ईंटों को ही बना सकती थी। लेकिन अब वैज्ञानिक इस जांच में लगे हैं कि लो ग्रेविटी और मंगल की जलवायु का कैसा असर इन ईंटों पर पड़ेगा| शोधकर्ताओं का कहना है कि इस ईंट में मार्स की मिट्टी और इंसान की यूरिन में मौजूद यूरिया मेन कंटेंट होंगे|

IISc में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और इस रिसर्च में शोधकर्ता आलोक कुमार का कहना है कि मंगल ग्रह की मिट्टी से ईंट बनाना मुश्किल काम था।  दरअसल, मंगल की मिट्टी में आयरन ऑक्साइड की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जिसकी वजह से बैक्टीरिया उसमें पनप नहीं पाते। यही कारण है कि मिट्टी को बैक्टीरिया के लिए अनुकूल बनाने के लिए निकल क्लोराइड का सहारा लिया गया।

बता दें कि पृथ्वी और मंगल के वातावरण में जमीन आसमान का अंतर है। वहां कार्बन डायऑक्साइड, परक्लोरेट्स ज्यादा और ग्रैविटी बेहद कम है। इससे ईंट के विकास में शामिल किए गए बैक्टीरिया पर असर पड़ सकता है।

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