मकर संक्रांति पर यूं ही नहीं इस्तेमाल होता काला तिल, सूर्य से है गहरा रिश्ता
नई दिल्ली। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। मकर संक्रांति के दिन तिल का भी खासा महात्व होता है। कहते हैं इस दिन से दिन तिल भर बड़ा होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह शरद ऋतु के अनुकूल होता है। इस दिन स्नान, दान, तप, जप और अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है।
यह भी पढ़ें-भगवान शंकर और कृष्ण से जुड़ा लोहड़ी का त्यौहार, जानिए पूरी कहानी
मकर संक्रांति से दिन बढऩे लगता है और रात की अवधि कम होती जाती है। चूंकि सूर्य ही ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्त्रोत है इसलिए हिंदू धर्म में मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व है।
यह भी पढ़ें-चाणक्य नीति
संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। इसलिए शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए मकर संक्रांति पर तिल का दान किया जाता है।