मेजर गोगोई को गुजरना पड़ सकता है कोर्ट मार्शल से, जानें क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया

नई दिल्ली| हाल ही में सेना के जाने माने मेजर गोगोई जो कश्मीर में पत्थरबाजों पर अपने सख्त रवैये से काफी चर्चा में रहे। उन्हें एक मामले में दोषी करार दिया गया है। तो सेना के द्वारा उनका कोर्ट मार्शल किया जायेगा। तो आज हम बार करेंगे कि कोर्ट मार्शल क्या होता है और इसकी प्रक्रिया क्या होती है-
मेजर गोगोई को गुजरना पड़ सकता है कोर्ट मार्शल से, जानें क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया
देश में सेना को कानूनी रूप से अलग रखा गया है, इसमें उनके द्वारा किये अपराधों में अलग-अलग तरह से सजा का प्रावधान है। देश की आम अदालतों की तरह ही सेना में भी अनुशासन बनाए रखने के लिए सैन्य अदालत गठित करने का सैन्य कर्मी या अफसर को दंडित करने का अधिकार है। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया भर की प्रमुख सेनाओं में होता है। इसे कोर्ट मार्शल कहा जाता है।
कैसे होता है कोर्ट मार्शल-
इसमें सैन्य अदालत को मौत की सजा देने का भी प्रावधान है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए सैन्य कानून बनाया गया था। उस समय इंडियन आर्मी एक्ट 1911 तैयार कर उसमें अपराध, अनुशासन हीनता और गंभीर लापरवाही के लिए कोर्ट मार्शल का प्रावधान किया था। देश की आजादी के बाद आर्मी एक्ट 1950 बनाया गया। इसके तहत सैन्य अदालत गठित करने और सजा देनी शक्तियां प्रदान की गई।
होनी चाहिए अलग अलग ऑथोरिटी
सैन्य अदालत के मामलों के जानकारों का कहना है कि सेना में अनुशासन के लिए सैन्य कानून व अदालत जरूरी है। भारत में सेना न्याय की प्रक्रिया अच्छी है। इसमें और स्वतंत्रता के लिए सिविल कोर्ट की तरह सैन्य अदालत में भी तीन अलग अलग ऑथोरिटी होनी चाहिए। सैन्य अदालत में कोर्ट मार्शल का पीठासीन अधिकारी ही सर्वेसर्वा होता है।
वहीं सब कुछ तय करता है। जरूरत है सिविल कोर्ट में जैसे जज, बचाव पक्ष सहित पूरी प्रक्रिय के अलग अलग डिपार्टमेंट होते है। वे ही पूरी प्रक्रिया को तय करते है, इसमें किसी तरह का दखल नहीं होता है। वैसे ही सेना में भी इस तरह के बदलाव किए जाने की जरूरत है।ये सबसे निचले स्तर की सैन्य अदालत होती है। इसमें नोन कमीशंड सैन्य कर्मियों के मामले की सुनवाई के लिए गठित होती है।
इसमें सिपाही से लेकर एनसीओ यानी नोन कमीशंड ऑफिसर को सजा देने का प्रावधान है। ये किसी भी रेजिमेंट या यूनिट का सीओ (कमान अधिकारी) समरी कोर्ट मार्शल गठित करता है। इसमें पीठासीन अधिकारी ही अकेला कोर्ट होता है, वही जज की भूमिका में रहता है। मामले की सुनवाई के बाद वहीं सजा सुनाता है। इसमें दो साल से कम सजा का प्रावधान है। सजा किसी भी तरह की हो सकती है। सजा को यूनिट का सीओ ही एप्रूव्ड करता है।

सजा के बाद नीचली अदालत या एएफटी में चुनौती
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल में सुनाई गई सजा को दोषी ठहराया गया कार्मिक सेशन कोर्ट में चुनौती दे सकता है। जबकि कोर्ट मार्शल में सुनाई गई सजा के खिलाफ पहले हाईकोर्ट में या सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी जाती थी।

 

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