लखनऊ में वकील को झूठे मुकदमे दायर करने के लिए 10 साल की सजा, कोर्ट ने कहा- लाइसेंस रद्द करें

लखनऊ के एक वकील लखन सिंह को झूठे मुकदमे दायर करने के लिए दस साल छह महीने की जेल और 2.5 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई है। विशेष एससी/एसटी कोर्ट ने यह भी सिफारिश की है कि बार काउंसिल उनकी वकालत का लाइसेंस रद्द करे।

विशेष जज ने पाया कि लखन सिंह ने अपने विरोधियों को जेल भेजने की साजिश रचते हुए 11 साल पुराने मामले में झूठी एफआईआर दर्ज की थी। जांच में पता चला कि सिंह ने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी सुनील दूबे और उनके सहयोगियों के खिलाफ फरवरी 2014 में झूठी एफआईआर दर्ज की, जिसमें हत्या का प्रयास और जातिसूचक टिप्पणी का आरोप लगाया गया था। यह मामला अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था।

हालांकि, डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस धीरेंद्र राय की जांच में सिंह के दावों में कई खामियां पाई गईं। मोबाइल फोन की लोकेशन डेटा और गवाहों के बयानों से साबित हुआ कि दूबे घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे। जांच में यह भी सामने आया कि एफआईआर वाले दिन सिंह की कार की एक मिनी-लोडर ट्रक से मामूली टक्कर हुई थी। सिंह ने इस घटना की शिकायत करने के बजाय ट्रक चालक से 12,000 रुपये लेकर मामले को कोर्ट के बाहर सुलझा लिया था। लेकिन उसी घटना को आधार बनाकर सिंह ने अपने प्रतिद्वंद्वी दूबे के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज की।

लंबा विवाद और झूठे मामले
पुलिस ने पाया कि सिंह और दूबे के बीच कृष्णा नगर क्षेत्र में तीन एकड़ जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। सिंह ने 1990 से 2009 के बीच दूबे और उनके परिवार के खिलाफ सात झूठी एफआईआर दर्ज की थीं, जिनमें हत्या का प्रयास, धोखाधड़ी और जालसाजी जैसे आरोप शामिल थे। इनमें से छह मामलों में सबूतों के अभाव में पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट दाखिल की थी।

कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने कहा कि एक वकील होने के नाते सिंह ने कानून और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया और दलित अत्याचार अधिनियम के तहत गंभीर आरोप लगाकर अपने विरोधियों को परेशान किया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर पुलिस ने सिंह की एफआईआर के आधार पर चार्जशीट दाखिल की होती, तो एक निर्दोष व्यक्ति और उसके सहयोगियों को दस साल की जेल हो सकती थी।

कोर्ट ने फैसले की प्रतियां उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को सिंह का वकालत लाइसेंस रद्द करने के लिए, और लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट व पुलिस आयुक्त को भेजने का आदेश दिया, ताकि सिंह द्वारा झूठे दलित अत्याचार मामले में प्राप्त किसी सरकारी राहत को वसूला जा सके।

मामले की प्रक्रिया
2024 में सिंह के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करने की कार्यवाही शुरू हुई। शुरुआत में उन्होंने बयान दर्ज करने से बचने की कोशिश की, लेकिन अंततः उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। 21 महीने के मुकदमे में 11 सुनवाइयां हुईं। कोर्ट ने उनकी सहायता के लिए एक वकील नियुक्त किया, लेकिन सिंह अपने बचाव में कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सके।

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