भगवान शिव को समर्पित कई मंदिर हमारे देश में बने हुए हैं. शिव जी के पौराणिक मंदिरों में से एक मुरुदेश्वर भी है. इस मंदिर का संबंध रामायण काल से है. इस मंदिर में भक्तों और टूरिस्टों की बहार हर समय रहती है. इस दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची भगवान शिव की मूर्ति मुरुदेश्वर मंदिर में ही है.
पहाड़, हरियाली और समुद्र की वजह से यह क्षेत्र बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगता है. मंदिर में भगवान शिव का आत्मलिंग भी स्थापित है। मंदिर के मुख्य द्वार पर दो हाथियों की मूर्तियां स्थापित हैं
मुरुदेश्वर मंदिर कंडुका पहाड़ी पर बनाया गया है, जो तीनों तरफ से अरब सागर से घिरा हुआ है. दक्षिण भारतीय मंदिरों की तरह इस मंदिर में 20 मंजिला गोपुरा बना हुआ है. यह 249 फुट लंबा दुनिया का सबसे बड़ा गोपुरा माना जाता है.
मंदिर परिसर में भगवान शिव की विशाल मूर्ति है. प्रतिमा की ऊंचाई 123 फीट है और इसे बनाने में लगभग 2 साल लगे.
इस मंदिर का मौजूदा स्वरूप व्यवसायी और समाज-सेवी आर एन शेट्टी द्वारा बनवाया गया था. इस मंदिर का संबंध रावण से भी है.
कथाओं के अनुसार, रामायण काल में रावण जब शिवजी से अमरता का वरदान पाने के लिए तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण को एक शिवलिंग दिया, जिसे आत्मलिंग कहा जाता है. इस आत्मलिंग के संबंध में शिवजी ने रावण से कहा था कि इस आत्मलिंग को लंका ले जाकर स्थापित करना, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा. यदि तुम अमर होना चाहते हो तो इस लिंग को लंका ले जा कर ही स्थापित करना.
रावण इस आत्मलिंग को लेकर चल दिया. देवता नहीं चाहते थे कि रावण अमर हो जाए इसलिए भगवान विष्णु ने छल करते हुए वह शिवलिंग रास्ते में ही रखवा दिया. जब रावण को विष्णु का छल समझ आया तो वह क्रोधित हो गया और इस आत्मलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया. तभी इस लिंग पर ढका हुआ एक वस्त्र उड़कर मुरुदेश्वर क्षेत्र में आ गया था. इसी दिव्य वस्त्र के कारण यह तीर्थ क्षेत्र माना जाने लगा.