BJP का विजय रथ रोकने के लिए सपा-बसपा का नया समीकरण तैयार, उपचुनाव से होगी शुरुआत

लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती के निवास पर हुई मैराथन बैठक के बाद उन्होंने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के समर्थन का फैसला किया है। वहीँ इस समर्थन का औपचारिक ऐलान रविवार को किया जाएगा। बसपा और सपा के इस महागठबंधन से ये साफ़ जाहिर है कि लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी लहर को रोकने के लिए इन दोनों पार्टियों ने एक नया समीकरण तैयार कर लिया है।

उपचुनाव

बताया जा रहा है कि गोरखपुर और फूलपुर में हो रहे लोकसभा उपचुनाव के बारे में बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के जिम्मेदार नेताओं से फीडबैक लिया था। दोनों लोकसभा क्षेत्रों के जोनल कोऑर्डिनेटर से भी उनकी बात हुई थी। जिसके बाद ये फैसला लिया गया है।

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गौरतलब है कि यूपी विधानसभा चुनाव-2017 में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को यूपी के सीएम का पद सौंपा गया तो वहीँ फूलपुर लोकसभा सीट पर विजयी हुए केशव प्रसाद मौर्य को यूपी का उपमुख्यमंत्री बनाया गया। जिसके बाद से ये दोनों ही सीटें खाली थीं जिसपर अब 11 मार्च को उपचुनाव होने जा रहे हैं। जिसके निताजों का ऐलान 14 मार्च को किया जाएगा।

फूलपुर सीट से भाजपा ने वाराणसी के पूर्व महापौर कौशलेंद्र सिंह पटेल को प्रत्याशी बनाया है। वहीं सपा ने नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल को चुनाव मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता जेएन मिश्र के पुत्र मनीष मिश्र पर दांव लगाया है।

योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव के लिए बीजेपी ने क्षेत्रीय अध्यक्ष उपेंद्र दत्त शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया है। वहीं उपेंद्र दत्त शुक्ला की संगठन और कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ है। पूर्वांचल में उनकी पहचान ब्राह्मण चेहरे के रूप में होती हैं। जो गोरखपुर से राज्यसभा सांसद और वर्तमान में केंद्र में मंत्री शिव प्रताप शुक्ला के बेहद करीबी बताए जाते है।

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सपा ने निषाद पार्टी और डॉ। अयूब की पीस पार्टी के साथ उपचुनाव में गठबंधन किया है। अखिलेश ने गोरखपुर से निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे इंजीनियर प्रवीण कुमार निषाद को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने डॉ। सुरहिता करीम को अपना प्रत्याशी घोषित किया है।

जानकारी के लिए बता दें कि गोरखपुर लोकसभा की सीट से 1952 में पहली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद गोरक्षनाथ पीठ के महंत दिग्विजयनाथ 1967 निर्दलीय चुनाव जीता। फिर 1970 में योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैद्यनाथ ने निर्दलीय जीत दर्ज की। 1971 से 1989 के बीच एक बार भारतीय लोकदल तो कांग्रेस का इस सीट पर कब्ज़ा रहा। लेकिन 1989 के बाद से सीट पर गोरक्षपीठ का कब्ज़ा रहा। महंत अवैद्यनाथ 1998 तक सांसद रहे। उनके बाद 1998 से लगातार पांच बार योगी आदित्यनाथ का कब्ज़ा रहा।

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