LoC पर जाने से पहले बदला जाता है जवानों का माइंड सेट
जवानों को प्रशिक्षण देने वाले सेना के प्रशिक्षकों का कहना है कि जम्मू कश्मीर, खासकर एलओसी पर जाने से पहले प्रत्येक सैनिक और अफसर का कोर बैटल स्कूल (सीबीएस) में माइंड सेट बदला जाता है, ताकि वे आतंक निरोधी अभियान के दौरान विपरीत परिस्थितियों में आतंकवादियों का बखूबी सामना कर सकें।
सेंस आफ डेंजर (खतरे का आभास) नामक इस कोर्स में सैनिकों को हैंड हैंडल थर्मल इमेजर्स (एचएचटीआई) के उपयोग की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें 25 लाख रुपये की कीमत वाले इस आधुनिक डिवाइस से आतंकियों की हरकतों को देखने के बाद उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जा सके। इस दौरान सैनिकों को यह भी बताया जाता है कि एलओसी पर आतंकियों की उपस्थिति की जानकारी मिलने के बाद उन्हें घेरने के लिए क्या एहतियात बरतें, ताकि दुश्मनों को उनका पता तक न चल पाए। सेना के प्रशिक्षक के अनुसार कई बार जवान आतंकवादियों के क्षेत्र में टार्च या लाइटर जलाने की गलती कर बैठता है और उन्हें छोटी सी गलती के कारण जान तक गंवानी पड़ जाती है।
दुश्मन सैनिकों के चलने की आवाज, दूरदराज गांव में बरतन गिरने, दुश्मन के छींक मारने पर उसके स्थान का अहसास करने की क्षमता बढ़ाने जैसी आधुनिक ट्रेनिंग सैनिकों को दी गई। वैसे तो सेना में शामिल होने वाले सैनिकों और अफसरों को सेंस आफ डेंजर की 14 दिनों की ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन आतंक प्रभावित इलाकों में सक्रिय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों को 28 दिनों यानी चार सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाता है।
इतना ही नहीं, जम्मू कश्मीर में तैनात होने वाले सीआरपीएफ, बीएसएफ और अन्य अर्धसैनिक बलों को भी पहले यह ट्रेनिंग लेनी अनिवार्य है।