भाषाई ईमेल सेवा ने पाट दी अंग्रेजी व हिंदी के बीच की डिजिटल खाई
नई दिल्ली। हिंदी के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में बुनियादी इंटरनेट अवसंरचना के साथ डोमेन नाम देश में डिजिटल खाई को पाटने में ताकतवर उत्प्रेरक की भूमिका का निर्वहन कर रहा है। अब भाषाई ईमेल सेवा संगठनों और व्यक्तियों को हिंदी में ई-मेल पते के जरिये इंटरनेट पर पंजीकरण, पहुंच और आपस में जोड़ने में सक्षम बना रहा है।
डाटा एक्सजेन प्लस टेक्नोलॉजी के संस्थापक और सीईओ तथा दुनिया की पहली भाषाई ईमेल सेवा डाटा मेल को जन्म देने वाले डॉ. अजय डाटा ने कहा कि भारत में करीब 55 करोड़ लोग अपनी भाषा के रूप में हिंदी का उपयोग कर रहे हैं। इस वजह से डेटामेल द्वारा संचालित भाषाई ईमेल सेवा उन लाखों लोगों को इंटरनेट शक्ति प्रदान करती है जो अंग्रेजी से खासे परिचित नहीं हैं।
हिन्दी को शीर्ष पर रखते हुए दुनिया की पहली भाषाई ईमेल सेवा ‘डाटा मेल’ ने उन लोगों के लिए भाषाई अवरोध तोड़ दिया है जो अनिवार्य रूप से केवल हिंदी ही समझते हैं। “हिन्दी दिवस के अवसर पर हम ‘इंटरनेट पर भाषा की आजादी’ का संकल्प लेते हैं।
जनगणना 2011 के अनुसार भारत में इस समय 1.2 अरब की कुल आबादी में 74 प्रतिशत साक्षर हैं। इसके बाद भी करीब 10 करोड़ ही इंटरनेट का उपयोग करते हैं। जनगणना के मुताबिक लगभग 44 फीसदी आबादी हिंदी के कुछ रूपों में पारंगत है और लगभग 12 फीसदी आबादी अंग्रेजी समझती है। हिंदी ही अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की ओर लेकर जाती है।
ऐसे देश में जहां 55 करोड़ हिंदीभाषी लोग रहते हैं, इंटरनेट तक पहुंच होने के बाद भी कई लोगों को भाषाई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ समय से भारत ने अलग-अलग नवाचार किए हैं ताकि लोगों के लिए इंटरनेट तक पहुंच सुनिश्चित हो सके और कनेक्टिविटी मिल सके।
अब भाषाई ई-मेल सेवाओं में वैश्विक नवाचारों के साथ भारत यूनिवर्सल एक्सेप्टेंस (सार्वभौमिक स्वीकार्यता) और इंटरनेशनलाइज्ड (अंतरराष्ट्रीयकृत) डोमेन नाम (आईडीएन) में इस तरह की तकनीकी सफलता का लाभ उठा सकता है। इससे इंटरनेट पर भाषाई बाधाएं टूट रही हैं। इस तकनीकी सफलता का सबसे ज्यादा लाभ हिन्दी बोलने वाले लोगों को होने वाला है।
हमें हिन्दी सहित विभिन्न लिपियों के बारे में अच्छी तरह से जागरूक इंटरनेट अवसंरचना की आवश्यकता थी। बहुभाषी इंटरनेट की इस जरूरत को पहचानते हुए और अंग्रेजी व गैर-अंग्रेजी आबादी के बीच डिजिटल खाई खत्म करने के लिए कुछ व्यक्तियों के एक भावुक समुदाय ने 1996 में बात करना शुरू किया था। इससे ही आईडीएन ने जन्म लिया था। एक्सजेनप्लस की ओर से उपलब्ध कराए गए ईमेल प्लेटफार्म ‘डाटामेल’ के तौर पर इसे तोड़ने में हमें लगभग दो दशक का वक्त लग गया।