जानें… प्रदोष व्रत की पूजा की विधि और महत्व

हर माह का प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने यह व्रत 23 अगस्त यानी कि आज मनाया जा रहा है। इस दिन भोले शिव की पूजा की जाती है। साथ ही कुछ लोग इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं। सावन के महीने में इस व्रत की महान्ता और भी बढ़ जाती है। आज हम आपको इस व्रत से जुड़ी और भी बाते बताने जा रहे हैं।

प्रदोष व्रत

पुरानी मन्यताओं के अनुसार यह त्योहार हर माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी को मनाया जाता है।

दिन के अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत त्योहार जिस दिन पड़ता है उसका भी अपना महत्व अलग बन जाता है। दिन के आधार पर ही व्रत और उसकी मान्यता भी बढ़ जाती है। अगर यह व्रत रविवार को रखते हैं तो आप हमेशा रोग से मुक्त रहते हैं साथ ही आपका स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहता है। इससे मन्यताएं भी बढ़ती हैं।

गुरूवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है। गुरूवार के प्रदोष व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्रवार प्रदोष व्रत से सौभाग्य की वृद्धि होती है। शनिवार के दिन जो मनुष्य प्रदोष व्रत रखता है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।

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पूजा की विधि

प्रदोष व्रत के दिन सूर्यास्त के बाद रात होने से पहले के बीचे का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस दिन सूर्यास्त के बाद और रात होने से पहले मतलब कि शाम के समय इस व्रत की पूजा की जाती है।

प्रदोष व्रत रखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की (बेलपत्र), गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें।

संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।

 

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