कुंभ मेले को यूनेस्को ने दी ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ की मान्यता

कुंभ मेले हमारे देश में धर्म का स्थान सर्वोपरि है. कई ऐतिहासिक जगहों का ताल्लुक धर्म से है. देश में वैसे तो कई मेले लगते हैं. लेकिन कुंभ मेले को लेकर लोगों में काफी आस्था है. हिंदू कैलेंडर के हिसाब से यह हर 12 साल में आयोजित होता है. कई अखाड़ों के साधु और लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं. देश के साथ विदेशी टूरिस्ट का भी  जमावड़ा लगता है. अब यूनेस्को ने कुंभ मेले को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के तौर पर मान्यता दे दी है.

कुंभ मेले का आयोजन चार स्थान हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयाग), नासिक और उज्जैन में होता है. योग और नवरोज के बाद पिछले करीब दो वर्षो में इस प्रकार की मान्यता प्राप्त करने वाला कुंभ मेला तीसरा धरोहर है.

मान्यताओं के अनुसार, इन चारों स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गई थीं. कुंभ की अवधि में इन पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से प्राणी मात्र के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. त्रियंबकेश्वर कुंभ को मानने वाले खुद को शैव बताते हैं जबकि नासिक कुंभ को मानने वाले वैष्णव कहलाते हैं.

यूनेस्को के अधीनस्थ संगठन इंटरगर्वनमेंटल कमिटी फोर द सेफगार्डिंग ऑफ इन्टेंजिबल कल्चरल हेरीटेज ने दक्षिण कोरिया के जेजू में हुए अपने 12वें सत्र में कुंभ मेले को ‘मावनता के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची’ में शामिल किया है.  दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाने वाला कुंभ मेला सूची में बोत्सवाना, कोलंबिया, वेनेजुएला, मंगोलिया, मोरक्को, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात की चीजों के साथ शामिल किया गया है.

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