लोकसभा में बहस और वोटिंग के बाद तीन तलाक बिल पारित, ओवैसी के सुझाए संशोधन खारिज

लोकसभानई दिल्ली। लम्बी बहस के बाद लोकसभा में ऐतिहासिक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 पास हो गया है। इस दौरान संशोधन प्रस्ताव पर देर तक बहस हुई। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में बिल पेश करते हुए कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है। सरकार महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए इस बिल को ला रही है।

इससे पहले संसद में इस बिल पर वोटिंग हुई। बिल में कुछ संशोधनों को लेकर यह वोटिंग हुई थी। एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने भी वोटिंग की मांग की थी। सदस्यों ने उनके संशोधनों को पूरी तरह से खारिज कर दिया।

बता दें एक संशोधन पर हुई वोटिंग में तो ओवैसी के पक्ष में सिर्फ 2 वोट पड़े, जबकि इसके खिलाफ 241 वोट पड़े। वहीं दूसरे प्रस्ताव में भी उनके पक्ष में सिर्फ 2 वोट पड़े। जबकि 242 लोगों ने उनके प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया।

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हालांकि, इससे पहले उनके संशोधन के प्रस्ताव को लोकसभा के सदस्यों ने ध्वनि मत से खारिज कर दिया था। इससे पहले, सदन में इस बिल पर विस्तृत चर्चा हुई।

बता दें बीजेडी, आरजेडी समेत कई विपक्षी दलों ने इस बिल का विरोध किया।

 

क्या है मुस्लिम महिला विधेयक

सरकार ‘द मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट’ नाम से इस विधेयक को लाई है। ये कानून सिर्फ तीन तलाक (INSTANT TALAQ, यानि तलाक-ए-बिद्दत) पर ही लागू होगा। इस कानून के बाद कोई भी मुस्लिम पति अगर पत्नी को तीन तलाक देगा तो वो गैर-कानूनी होगा।

अगर किसी महिला को तीन तलाक दिया जाता है तो वह महिला खुद अपने और अपने नाबालिग बच्चों के लिए मजिस्ट्रेट से भरण-पोषण और गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है। कितना गुजारा भत्ता देना है, उसका अमाउंट मजिस्ट्रेट तय करेगा। महिला अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी के लिए भी मजिस्ट्रेट से गुहार लगा सकती है।

बता दें पीएम नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक पर कानून बनाने के लिए एक मंत्री समूह बनाया था, जिसमें राजनाथ सिंह, अरुण जेटली,  सुषमा स्वराज, रविशंकर प्रसाद, पीपी चौधरी और जितेंद्र सिंह शामिल थे।

सरकार के सूत्रों का कहना है कि 1986 के शाहबानो केस के बाद बना कानून तलाक के बाद के लिए था जबकि इस नए कानून से सरकार तीन तलाक को रोकना चाहती है और पीड़ित महिलाओं को न्याय देना चाहती है। ये कानून अब अस्तित्व में आएगा।

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बता दें कि इस्लाम में विवाह को खत्म करने के लिए पति और पत्नी दोनों का सामान्य अधिकार है। जहां पति को ये अधिकार तलाक के रूप में दिया जाता है वहीं महिलाओं को ये खुला के रूप में दिया जाता है। इस्लाम में महिलाओं को पूरी आजादी है कि वो अपने शौहर से तलाक लेकर अपनी जिंदगी का फैसला कर सकती है।

वहीं मध्य प्रेदश के भोपाल रियासत की मुस्लिम महिलाएं इस हक का खुलकर उपयोग कर रही है। भोपाल रियासत के तहत तीन जिले आते हैं, जिसमें भोपाल के अलावा रायसेन और सीहोर जिले शामिल हैं। मसाजिद कमेटी के आंकड़ों के मुताबिक, रियासत में मुस्लिम महिलाओं के खुला यानी तलाक लेने के मामले में पुरुषों के मुकाबले करीब 20 फीसदी ज्यादा हैं।

यह रहें आकंडें-

-वर्ष 2016 में खुला के 459 मामले सामने आए थे।

-इसी साल 386 पुरुषों ने तलाक लिए आवेदन दिया था।

-वर्ष 2017 के पहले तीन महीनों में भी महिलाएं तलाक मांगने में आगे रही।

-एक जनवरी 2017 से 31 मार्च 2017 तक 131 महिलाओं ने खुला के हक का प्रयोग किया।

-इस दरमियान पुरुषों के तलाक चाहने वालों संख्या 80 रही।

-वहीं, 18 मामलों में मसाजिद कमेटी ने पति और पत्नी में राजीनामा करा दिया, जिसके बाद वह साथ में रहने के लिए राजी हो गए।

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