अनुच्छेद 35ए पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, केंद्र सरकार ने मांगा दो महीने का वक्त
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35ए पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई टाल दी है। केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में मौजूद रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने नोटिस पर जवाब देने के लिए आठ हफ़्तों का समय मांगा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह पूछा था कि केंद्र बताए बिना संसद में प्रस्ताव पारित किए इस अनुच्छेद को संविधान में कैसे शामिल किया गया? इसे निरस्त करने पर सरकार क्या सोचती है?
अटॉर्नी जनरल ने नोटिस का जवाब देने की मोहलत मांगते हुए कश्मीर समस्या के लिए नियुक्त मध्यस्थ की तैनाती का हवाला दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि वो इस मामले से जुड़े तमाम पक्षकारों से बात कर रहे हैं।
इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर शामिल हैं।
क्या है अनुच्छेद 35ए
1- अनुच्छेद 35-ए संविधान का वह आर्टिकल है जो जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर प्रावधान करता है कि वह राज्य में स्थायी निवासियों को परिभाषित कर सके।
2- साल 1954 में 14 मई को राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35 A जोड़ दिया गया। आर्टिकल 370 के तहत यह अधिकार दिया गया है।
3- साल 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बना जिसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया।
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4- जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक, स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 सालों से राज्य में रह रहा हो, और उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।
5- साल 2014 में एक एनजीओ ने अर्जी दाखिल कर इस आर्टिकल को समाप्त करने की मांग की।