धर्म और इतिहास की दास्तां बयां करती हैं एलिफेंटा की गुफाएं

भारत में हर तरफ इतिहास और धर्म का अनूठा संगम देखने को मिलता है. अगर आप भी धर्म और इतिहास के इस अनूठे संगम को देखना चाहते हैं तो  महाराष्ट्र के एलिफेंटा की गुफाओं की सैर जरूर करनी चाहिए. मुम्बई के गेट वे ऑफ इंडिया से करीब 12 किमी दूर स्थित एलिफेंटा की कलात्मक गुफा का प्राचीन नाम घारापुरी था.

एलिफेंटा की गुफाओं

इस गुफा को एलिफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा उनके शासन काल में पत्थर के बने हाथी की वजह से दिया गया था. इस स्थान पर कुल सात गुफाएं हैं जिसमें से मुख्य गुफा 26 स्तंभों से बनी हुई है और उसमें भगवान शिव के सभी रूपों को दर्शाया गया है. गुफाओं की इन मूर्तियों को पत्थरों को काटकर बनाया गया है. ये मूर्तियां दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित है.

शिव को समर्पित हैं ये स्थान

वैसे तो यहां पर हिन्दू धर्म की सभी देवी-देवताओं की मूर्तियां है लेकिन यह स्थान विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित है. इस गुफा में शिव की नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियां है जो भगवान भोले की विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं. इनमे से भगवान शिव की त्रिमूर्ति सबसे आकर्षक लगती है. जिसकी लम्बाई करीब 23 से 24 मीटर और ऊंचाई 17 मीटर है. इसमें भगवान शिव के तीन रूपों को दर्शाया गया है. इन मूर्तियों में से एक मूर्ति भगवान शिव की पंचमुखी परमेश्वर रूप की भी है. जिसमें आप को शांति और सौम्यता का दर्शन होगा. वहीं अर्धनारीश्वर रूप की भी एक मूर्ति है जिसमें भारतीय दर्शन और कला का सुन्दर समन्वय दर्शाया गया है. इस प्रतिमा में पुरुष और प्रकृति की दो मुख्य शक्तियों को मिला दिया गया है. मूर्ति में भगवान शिव तनकर खड़े हैं और उनका हाथ अभय मुद्रा में है और जटा से गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिधारा बहती हुई दिखाई देती है. इस गुफा में शिव के भैरव रूप की भी सुन्दर झलक देखने को मिलती है.गुफ्फा में भगवान शिव के तांडव नृत्य की मुद्रा को भी दिखाया गया है.

अपनी विशेषताओं के कारण बनी विश्व धरोहर

शिव के सभी रूपों के दर्शन होने के कारण लोग इस गुफा को भगवान शिव का मंदिर भी कहते हैं. इसी कारण यहां की मूर्तियां सबसे अच्छी और महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस गुफा में शिव-पार्वती के विवाह का भी सुंदर चित्रण किया गया है. इनकी खासियत की वजह से इन्हें 1986 में यूनेस्को ने इस गुफा को विश्व धरोहर घोषित कर दिया गया था. ये गुफाएं ठोस चट्टानों से काट कर बनायी गई हैं. बताते हैं कि इन्‍हें नौंवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक के सिल्हारा वंश (8100–1260) के राजाओं ने बनवाया था.

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