रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ ED की चार्जशीट: शिकोहपुर जमीन सौदे में धनशोधन का आरोप, इतने करोड़ की संपत्ति कुर्क

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ हरियाणा के गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में 2008 में हुए 3.53 एकड़ जमीन सौदे से जुड़े धनशोधन मामले में चार्जशीट दाखिल की है। यह पहली बार है जब किसी जांच एजेंसी ने वाड्रा के खिलाफ आपराधिक मामले में अभियोजन शिकायत (चार्जशीट) दायर की है।

ईडी ने 16 जुलाई को वाड्रा और उनकी कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्रा. लि. सहित अन्य संस्थाओं से जुड़ी 43 अचल संपत्तियों को, जिनकी कीमत 37.64 करोड़ रुपये है, अस्थायी रूप से कुर्क किया है। चार्जशीट 17 जुलाई को दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में दायर की गई, जिसमें वाड्रा के साथ 11 अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं, जैसे सत्यानंद याजी, केवल सिंह विर्क, और उनकी कंपनी ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज प्रा. लि., को आरोपी बनाया गया है। कोर्ट ने 18 जुलाई को दस्तावेजों के सत्यापन के लिए मामले को 24 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

ईडी के आरोप:
ईडी का आरोप है कि वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने फरवरी 2008 में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से शिकोहपुर में 3.53 एकड़ जमीन 7.5 करोड़ रुपये में खरीदी, जिसमें “झूठी घोषणाओं” का इस्तेमाल किया गया। खरीद के अगले ही दिन जमीन का म्यूटेशन (स्वामित्व हस्तांतरण) कर दिया गया और 24 घंटे के भीतर इसका शीर्षक वाड्रा की कंपनी को हस्तांतरित कर दिया गया, जबकि यह प्रक्रिया आमतौर पर तीन महीने लेती है। इसके एक महीने बाद, तत्कालीन कांग्रेस सरकार (भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में) ने स्काई लाइट को 2.7 एकड़ जमीन पर कमर्शियल कॉलोनी विकसित करने का लाइसेंस दिया, जिससे जमीन की कीमत में भारी उछाल आया। जून 2008 में, स्काई लाइट ने यह जमीन डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दी, जिससे कुछ ही महीनों में लगभग 700% का मुनाफा हुआ। ईडी का दावा है कि यह लेनदेन धनशोधन का एक स्पष्ट मामला है, जिसमें कम मूल्यांकन, जाली दस्तावेज, और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल शामिल था।

इसके अलावा, ईडी ने आरोप लगाया कि स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के पास जमीन खरीदने की वित्तीय क्षमता नहीं थी, क्योंकि कंपनी के पास केवल 1 लाख रुपये की पूंजी थी। छह महीने बाद, स्काई लाइट ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को 15.38 करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो बिक्री दस्तावेज में दर्ज राशि से दोगुना था, जिसे ईडी ने स्टांप ड्यूटी से बचने के लिए “कम मूल्यांकन” का मामला बताया।

मामले का खुलासा कैसे हुआ?
यह मामला अक्टूबर 2012 में तब सामने आया जब हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका, जो उस समय भूमि समेकन और रिकॉर्ड विभाग के महानिदेशक थे, ने इस सौदे की जांच शुरू की। खेमका ने जमीन के म्यूटेशन को रद्द कर दिया, इसे राज्य समेकन अधिनियम और अन्य प्रक्रियाओं का उल्लंघन बताते हुए। इसके बाद खेमका का तबादला कर दिया गया, जिससे विवाद और बढ़ गया। 2014 में बीजेपी की मनोहर लाल खट्टर सरकार के सत्ता में आने के बाद, एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया गया, जिसने 2016 में 182 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी। हालांकि, यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। सितंबर 2018 में गुरुग्राम पुलिस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा, वाड्रा, डीएलएफ, और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की, जिसके आधार पर ईडी ने जांच शुरू की।

वाड्रा और हुड्डा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दिया है। वाड्रा का कह अन है कि यह मामला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा गांधी परिवार को निशाना बनाने का हिस्सा है।

संपत्ति कुर्क करने का मतलब:
धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 5 के तहत, ईडी किसी ऐसी संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क कर सकती है, जिसे अपराध से प्राप्त आय (प्रोसीड्स ऑफ क्राइम) माना जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संदिग्ध संपत्ति को छिपाया, स्थानांतरित, या बेचा न जाए, जिससे जांच प्रभावित हो। 16 जुलाई 2025 को जारी इस अस्थायी कुर्की आदेश के तहत वाड्रा और उनकी कंपनियों से जुड़ी 43 संपत्तियों को कुर्क किया गया है, जिनका मूल्य 37.64 करोड़ रुपये है। यह आदेश 180 दिनों तक वैध रहता है, जब तक कि पीएमएलए के तहत नियुक्त न्यायिक प्राधिकरण (एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी) इसकी पुष्टि नहीं करता। यदि प्राधिकरण कुर्की को मंजूरी देता है, तो संपत्ति ईडी के नियंत्रण में रहती है, लेकिन स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होता। यदि प्राधिकरण कुर्की को अस्वीकार करता है, तो संपत्ति मालिक को वापस मिल जाती है।

आम तौर पर, न्यायिक प्राधिकरण ईडी की कुर्की को मंजूरी दे देता है। यदि आरोपी को दोषी ठहराया जाता है, तो ट्रायल कोर्ट कुर्क संपत्ति को जब्त करने और इसका स्वामित्व केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने का आदेश दे सकता है। कुर्क संपत्तियां वर्षों तक लॉक रह सकती हैं और उनकी स्थिति खराब हो सकती है।

आरोपी क्या कर सकता है?
आरोपी के पास निम्नलिखित विकल्प हैं:

  1. न्यायिक प्राधिकरण के आदेश को चुनौती देना: आरोपी 45 दिनों के भीतर पीएमएलए के अपीलीय ट्रिब्यूनल में प्राधिकरण के पुष्टिकरण आदेश को चुनौती दे सकता है।
  2. उच्च न्यायालय में अपील: यदि ट्रिब्यूनल भी कुर्की को बरकरार रखता है, तो आरोपी उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
  3. संपत्ति खाली करना: यदि अदालतें राहत नहीं देतीं, तो ईडी आरोपी को संपत्ति खाली करने और सामान हटाने का आदेश दे सकती है।
  4. मुकदमे का सामना: यदि दोषी साबित होता है, तो संपत्ति स्थायी रूप से जब्त हो सकती है, और स्वामित्व केंद्र सरकार को चला जाएगा।

आगे क्या हो सकता है?

  1. कोर्ट में सुनवाई: राउज एवेन्यू कोर्ट 24 जुलाई 2025 को चार्जशीट पर विचार करेगा। यदि कोर्ट चार्जशीट को स्वीकार करता है, तो मुकदमा शुरू होगा, जिसमें वाड्रा और अन्य आरोपियों को अपने बचाव में सबूत पेश करने होंगे।
  2. संपत्तियों की कुर्की पर फैसला: पीएमएलए का न्यायिक प्राधिकरण 180 दिनों के भीतर कुर्की की वैधता पर फैसला लेगा। यदि कुर्की की पुष्टि होती है, तो संपत्तियां ईडी के नियंत्रण में रहेंगी।
  3. राजनीतिक विवाद: यह मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, क्योंकि वाड्रा गांधी परिवार से जुड़े हैं। राहुल गांधी और कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दिया है, जबकि बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई बता रही है। यह मुद्दा आगामी संसद सत्र में जोर-शोर से उठ सकता है।
  4. अन्य मामलों में जांच: वाड्रा बीकानेर जमीन सौदे और संजय भंडारी से जुड़े लंदन प्रॉपर्टी मामले में भी ईडी की जांच के दायरे में हैं। इन मामलों में भी जल्द चार्जशीट दाखिल हो सकती है।
LIVE TV