
उत्तर प्रदेश के 29 जिलों में कम बारिश के कारण सूखे जैसे हालात बन गए हैं, जिससे खरीफ फसलों, विशेष रूप से धान, मक्का, बाजरा, और अरहर की रोपाई और उत्पादन पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

पूर्वांचल के 13 जिले, खासकर देवरिया, सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जहां बारिश सामान्य से 40% से कम रही है। कृषि विभाग ने स्थिति को देखते हुए सिंचाई और ऊर्जा विभागों से तत्काल सहायता मांगी है, ताकि नहरों में पानी और बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
वर्तमान स्थिति और प्रभावित जिले
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़ों के अनुसार, 23 जुलाई 2025 तक प्रदेश में बारिश की स्थिति असमान रही है:
- 16 जिले: 40% से कम बारिश (अल्प मात्रा), जिनमें 8 पूर्वांचल के हैं।
- सबसे कम बारिश वाले जिले:
- देवरिया: 6.5%
- गौतमबुद्ध नगर: 13.2%
- कुशीनगर: 20.4%
- शामली: 21.1%
- संत कबीरनगर: 23.2%
- 13 जिले: 40-60% बारिश (अत्यधिक कम), जो सूखे की कगार पर हैं।
- 12 जिले: 60-80% बारिश (सामान्य से कम)।
- 18 जिले: सामान्य बारिश (80-120%)।
- 16 जिले: सामान्य से अधिक बारिश (120% से ज्यादा), खासकर बुंदेलखंड में।
- सबसे ज्यादा बारिश वाले जिले:
- ललितपुर: 242%
- बांदा: 234%
- चित्रकूट: 201%
- हमीरपुर: 198%
- महोबा: 197%
पूर्वांचल में बारिश की भारी कमी के कारण खेतों में धूल उड़ रही है, और ज्यादातर खेत खाली पड़े हैं।
फसलों पर प्रभाव
खरीफ सीजन की फसलों पर सूखे जैसे हालात का गंभीर असर पड़ रहा है:
- धान: लक्ष्य के सापेक्ष 99% नर्सरी तैयार, लेकिन केवल 65% रोपाई हो पाई।
- जौनपुर के किसान जमुना प्रसाद ने बताया कि बारिश न होने से 10 बीघा में से केवल 2 बीघा रोपाई हो सकी।
- आजमगढ़ के ढेमा गांव के विश्व विजय सिंह ने कहा कि नहरों में पानी की कमी और ट्रांसफार्मर खराब होने से रोपाई रुकी हुई है।
- देवरिया के मनीष सिंह ने बताया कि खेतों में पानी नहीं है, और नहरें सूखी पड़ी हैं।
- अन्य फसलें:
- मक्का: 62% बुआई
- बाजरा: 32% बुआई
- अरहर: 52% बुआाई
- मूंगफली: 31% बुआई
- तिल: 54% बुआई
कम बारिश ने खरीफ फसलों के उत्पादन को 20-30% तक कम करने की आशंका बढ़ा दी है, जिससे किसानों की आय और खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।
मौसम वैज्ञानिकों की राय
मौसम विज्ञानी डॉ. अमर नाथ मिश्र के अनुसार, मानसून की कमजोर सक्रियता के कारण बारिश में कमी आई है। नमी की कमी और हवाओं की तेजी इसके प्रमुख कारण हैं। जिन 16 जिलों में 40% से कम बारिश हुई है, वहां स्थिति सामान्य होने की संभावना कम है। हालांकि, बुंदेलखंड जैसे कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त बारिश ने राहत दी है।
कृषि विभाग और सरकार के प्रयास
कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया कि प्रभावित जिलों में किसानों को राहत देने के लिए तत्काल कदम उठाए जा रहे हैं:
- सिंचाई: नहर विभाग को पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
- ऊर्जा: बिजली विभाग से निर्बाध बिजली आपूर्ति की मांग की गई है, ताकि ट्यूबवेल के जरिए सिंचाई हो सके।
- अनुदान: कम बारिश वाली फसलों जैसे बाजरा के बीज पर अनुदान की व्यवस्था की गई है।
- आगे की रणनीति: 31 जुलाई तक बारिश की स्थिति का आकलन कर सूखा घोषित करने पर विचार किया जाएगा। यदि बारिश सामान्य स्तर तक नहीं पहुंची, तो प्रभावित जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर केंद्र से राहत राशि मांगी जा सकती है।
कृषि विभाग ने केंद्र सरकार से भी संपर्क किया है, ताकि प्राकृतिक आपदा राहत कोष (SDRF) और राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) के तहत सहायता मिल सके।
केंद्र और राज्य की राहत योजनाएं
- SDRF/NDRF: उत्तर प्रदेश के लिए केंद्र और राज्य सरकारें 3:1 के अनुपात में आपदा राहत कोष में योगदान करती हैं। यह कोष सूखा, बाढ़, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिए उपयोग किया जाता है।
- फसल बीमा: प्रभावित किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन नुकसान का आकलन फसल कटाई के बाद ही पूरा होगा।
- कृषि योजनाएं: केंद्र सरकार की योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), अतुल भूजल योजना, और जल जीवन मिशन सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल प्रबंधन को मजबूत करने के लिए लागू की जा रही हैं।
चुनौतियां और भविष्य
- जल प्रबंधन की कमी: यूपी के कई हिस्सों में नहरों में पानी की कमी और अनियमित बिजली आपूर्ति ने सिंचाई को मुश्किल बना दिया है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की अनियमितता बढ़ रही है, जिससे सूखे और बाढ़ जैसी आपदाएं बार-बार हो रही हैं।
- कृषि पर निर्भरता: यूपी में 70% से अधिक खेती वर्षा पर निर्भर है, जिससे कम बारिश का प्रभाव गंभीर हो जाता है।
- किसानों की मांग: किसान नहरों में नियमित पानी, बिजली आपूर्ति, और फसल नुकसान की तत्काल मुआवजा राशि की मांग कर रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में किसानों ने धरना-प्रदर्शन भी शुरू किया है।
यदि 31 जुलाई तक बारिश में सुधार नहीं हुआ, तो 29 जिलों, विशेष रूप से पूर्वांचल के 13 जिलों, को सूखाग्रस्त घोषित करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इससे केंद्र सरकार से 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की राहत राशि की मांग की जा सकती है, जैसा कि 2015 में 50 जिलों के लिए 2,058 करोड़ रुपये मांगे गए थे।