जानिए…वह मंदिर जहां मगरमच्छ करता है भगवान विष्णु की रक्षा

विष्णु की रक्षाभारत में हर जगह कुछ न कुछ ऐसा पाया जाता हैं जिसपर यकीन कर पाना मुश्किल  होता हैं किन्तु होता वो सत्य हैं। परेशानी ये हैं की इन मान्यताओं के बारे में स्थानीय लोगों के अलावा और कोई नहीं जानता। इसलिए इन्हें मानने में थोडा सोचना पड़ता हैं लेकिन इन मान्यताओं के पीछे बहुत सारे दावे होते हैं।

कुछ मान्यताएं इतनी दिलचस्प हैं जिनके बारे में आप भी जानना चाहेंगे साथ ही इन मान्यताओं के बारे में जानकर चौंक जाएंगे। ऐसी ही एक मान्यता की जानकारी आज हम आपको दे रहे है

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केरल का अनंतपुर मंदिर जो कासरगोड में स्थित है, यह केरल का एकमात्र मंदिर हैं जिसमे  झील है। इस मंदिर की यह खासियत है कि यहां की रखवाली एक मगरमच्छ करता है। बबिआ नाम के मगरमच्छ से फेमस इस मंदिर में एक और चीज अजीब देखने को मिलती हैं।

यहाँ के लोगो का मानना है कि जब इस झील में एक मगरमच्छ की मृत्यु होती है तो रहस्यमयी ढंग से दूसरा मगरमच्छ प्रकट हो जाता है। दो एकड़ की झील के बीचों-बीच बना यह मंदिर भगवान विष्णु (भगवान अनंत-पद्मनाभस्वामी) का है।

मान्यता है कि मंदिर की झील में रहने वाला यह मगरमच्छ पूरी तरह शाकाहारी है और मंदिर का पुजारी इसके मुंह में प्रसाद डालते हैं जिसे ये ग्रहण भी करता हैं और पुजारियों को नुकसान भी नही पहुंचाता हैं।

यहाँ ये भी मान्यता हैं कि यहाँ कितनी भी ज्यादा या कम बारिश होने पर झील के पानी का स्तर हमेशा एक-सा रहता है। यह मगरमच्छ अनंतपुर मंदिर की झील में करीब 60 सालों से रह रहा है। यहाँ जो प्रसाद भगवान को चढ़ता हैं। पूजा के बाद भक्तों द्वारा चढ़ाया गया प्रसाद बबिआ को खिलाया जाता है।

प्रसाद खिलाने की अनुमति सिर्फ मंदिर प्रबंधन के लोगों को है। मान्यता है कि यह मगरमच्छ पूरी तरह शाकाहारी है और प्रसाद इसके मुंह में डालकर खिलाया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मगरमच्छ शाकाहारी है और झील के अन्य जीव भी सुरक्षित हैं।

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि 1945 में एक अंग्रेज सिपाही ने तालाब में मगरमच्छ को गोली मारकर मार डाला था और अविश्वसनीय रूप से अगले ही दिन वही मगरमच्छ झील में तैरता मिला। और उसके कुछ ही दिनों बाद अंग्रेज सिपाही की सांप के काट लेने से मौत हो गई।

चाणक्य नीति

लोग इसे सांपों के देवता अनंत का बदला मानते हैं। यहाँ ऐसी मान्यता हैं कि अगर आप भाग्यशाली हैं तो आज भी आपको इस मगरमच्छ के दर्शन हो जाते हैं। मंदिर के ट्रस्टी श्री रामचन्द्र भट्ट जी कहते हैं, ‘हमारा दृढ़ विश्वास है कि ये मगरमच्छ ईश्वर का दूत है और जब भी मंदिर प्रांगण में या उसके आसपास कुछ भी अनुचित होने जा रहा होता है तो यह मगरमच्छ हमें सूचित कर देता है’।

इस मंदिर की मूर्तियां धातु या पत्थर की नहीं बल्कि 70 से ज्यादा औषधियों की सामग्री से बनी हैं। इस प्रकार की मूर्तियों को ‘कादु शर्करा योगं’ के नाम से जाना जाता है।

हालांकि, 1972 में इन मूर्तियों को पंचलौह धातु की मूर्तियों से बदल दिया गया था, लेकिन अब इन्हें दोबारा ‘कादु शर्करा योगं’ के रूप में बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनंत-पद्मनाभस्वामी का मूल स्थान है। स्थानीय लोगों का विश्वास है की भगवान यहीं आकर स्थापित हुए थे।

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