कर्नाटक फतह कर टूटी कांग्रेस की रीढ़, इस कारण हारेगी 2019 के चुनाव!

नई दिल्ली। कर्नाटक में सत्ता पर काबिज होने के बाद कांग्रेस अब भाजपा के मिशन 2019 को फेल करनी की पूरी कोशिश करने में जुटी हुई हैं, लेकिन आंतरिक रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है कि चाहकर भी कांग्रेस साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा का किला नहीं तोड़ पाएगी। कारण यह है कि उनकी आर्थिक स्थिति तंगी के निचले पायदान पर आ टिकी है।

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कर्नाटक में सत्ता

आलम यह है कि राज्य इकाइयों को चलाने के लिए भी पार्टी के पास उपयुक्त फंड नहीं है। ऐसे में उनके लिए आगामी लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार-प्रसार करना भी कठिन होगा।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस की फंडिंग में बड़ी हिस्सेदारी उद्योगपतियों की है जो कि धीरे-धीरे खत्म हो रही है।

खबरों के मुताबिक़ एक अधिकारी ने ब्लूमबर्ग को बताया, पूर्वी राज्यों में इस साल हुए चुनावों के दौरान पार्टी के नेता वक्त पर नहीं पहुंच पाए, फंड की कमी के चलते वे फ्लाइट टिकट के लिए आखिरी वक्त तक इंतजार ही करते रहे।

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नगालैंड, त्रिपुरा और मेघालय चुनावों में भाजपा के मुकाबले पार्टी का अभियान कमजोर नजर आया, जो कि यहां कांग्रेस के सत्ता में ना आने की एक अहम वजह थी।

तंगी से उबरने के लिए पार्टी खर्चों पर लगाम लगा रही है, जो कि यात्रा से लेकर मेहमानों को चाय पिलाने तक पर लागू हो रहे हैं।

कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रभारी दिव्य स्पंदन ने कहा कि हमारे पास पैसा नहीं है। भाजपा की तुलना में हमारे पास इलेक्टोरल बॉन्ड्स से फंड कम आ रहा है। जिसके चलते कांग्रेस फंड के लिए ऑनलाइन स्रोतों पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ रहा है।

हालांकि, इस मसले पर जब कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला से सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया।

वॉशिंगटन में कार्नेजी इंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में रिसर्च फेलो मिलन वैष्णव ने कहा, “2019 की तरफ बढ़ रही भाजपा के लिए फंडिंग की बढ़त छोटी-मोटी नहीं, बल्कि निर्णायक होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय दल भाजपा के मुकाबले कम बिजनेस फ्रैंडली नजर आ रहे हैं।’

बता दें कि 2013 में कांग्रेस के पास 15 राज्य थे, लेकिन अब उसके पास केवल 2 बड़े राज्य हैं। उधर, भाजपा और एनडीए 20 राज्यों में शासन कर रहे हैं। और, अगले आम चुनावों से पहले भी मोदी देश के सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बने हुए हैं।

वहीं 2016-17 सात राष्ट्रीय पार्टियों की कुल आमदनी 1559 करोड़ रुपए रही। इसमें सबसे ज्यादा आमदनी भाजपा, फिर कांग्रेस की है। भाजपा की कमाई 81.8% बढ़कर 1034 करोड़ रुपए हो गई। 2015-16 में यह 570.86 करोड़ रुपए थी। कांग्रेस की आमदनी में 14% की कमी आई है। पार्टी की आय 261.56 करोड़ रुपए से घटकर 225.36 करोड़ रुपए रह गई है।

भाजपा को 2016-17 में अनुदान, दान और योगदान के जरिए उसे 997.12 करोड़ रुपए मिले। यह फाइनेंशियल ईयर 2016-17 के दौरान की कुल आमदनी का 96.41% है। उधर, इस दौरान कांग्रेस को समान सोर्स से 50.626 करोड़ रुपए मिले। यह उसकी कुल आमदनी का 51.32% है।

भाजपा ने फाइनेंशियल ईयर 2016-17 में 606.64 करोड़ रुपए चुनाव और प्रचार अभियानों पर खर्च किए। वहीं, प्रशासनिक कामों पर 69.78 रुपए लगाए।

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