कभी तड़पे थे किलकारी सुनने को, अब 19 लड़कियां और 27 लड़के

बच्चे को गोदलखनऊ। कब किसकी जिंदगी किस ओर करवट ले ले, किसी को नहीं पता होता। ऐसा ही कुछ हुआ मुजफ्फरनगर के एक दंपती के साथ। घर में शादी के बाद सालों तक किलकारी नहीं गूंजी। परेशान हो दिव्यांग बच्चे को गोद लिया। आज इस पति-पत्नी के 46 बच्चे हैं।

1981 में बाघपत के वीरेंद्र राणा से शामली के कुदाना गांव की मीना राणा की शादी हुई थी। शादी के बाद पूर 10 साल पति-पत्नी बच्चे की चाहत में जीते रहे। बाद में पता चला कि मीणा कभी मां नहीं बन सकतीं। दोनों साल 1990 में शुक्रताल में आकर रहने लगे।

लेकिन समय और किस्मत किसी और रास्ते आने का फैसला कर चुकी थी। दंपती ने 1990 में एक दिव्यांग बच्चे को गोद लेने का फैसला किया। नाम रखा मांगेराम। लेकिन दंपती की जिंदगी में उस बच्चे का प्यार ज्यादा समय तक नहीं था। पांच साल बाद मांगेराम चल बसा।

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दंपती ने उम्मीद नहीं छोड़ी और बेसहारा बच्चों को अपने साथ लाकर रखने लगे। लगभग तीन दशक के बाद इस वक्त वे 46 बच्चों के माता-पिता हैं और सभी के लिए एक मिसाल कायम कर रहे हैं।

उन्हें शुक्रताल में एक आठ बीघा जमीन डोनेशन में मिली जिसपर वह अनाथाश्रम चलाते हैं। इसी में एक स्कूल भी है। इस वक्त यहां 46 बच्चे हैं। कई ऐसे रहे जो बड़े होकर नौकरी करने बाहर चले गए। कइयों की शादी हो गई। यह सब पूरा किया जा सका डोनेशन्स की मदद से।

मीना कहती हैं कि उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे हिंदू हैं या मुस्लिम। वह कहती हैं, ‘मुझे सिर्फ इतना पता है कि ये मेरे बच्चे हैं। हमारा ध्यान इनकी पढ़ाई पर है।’

इस वक्त यहां रह रहे बच्चों में से 19 लड़कियां हैं और 27 लड़के। इनमें से कई दिव्यांग हैं। अनाथाश्रम में एक अच्छी रसोई, बड़े कमरे और एक बड़ा सा खेल का मैदान है।

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