संविधान पीठ पहुंचा SC-ST प्रमोशन का मामला, बदल सकते हैं पुराने नियम
नई दिल्ली। एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में अब नया मोड़ आ गया है। मंगलवार को मामले में सुनवाई के दौरान दो जजों की पीठ जस्टिस आर भानुमति और कुरियन जोसेफ ने सुनवाई के लिए संविधान पीठ को भेजा था।
बता दें ईवी चेन्नैया और एम नागराज के फैसलों मे अंतर होने के कारण इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा था।
वहीँ दो जजों की पीठ द्वारा मामले को संविधान पीठ को भेजने के फैसले पर सवाल खड़ा हो गया है। अब पांच जजों की पीठ पहले यह तय करेगी कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं। दो जजों की पीठ द्वारा मामले को संविधान पीठ को भेजने के फैसले पर सवाल खड़ा हो गया है।
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अब पांच जजों की पीठ पहले यह तय करेगी कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं। मामला अनुच्छेद 145(3) के तहत भेजा गया है जोकि संवैधानिक प्रावधान से जुड़े मामले पर संविधान पीठ के सुनवाई करने की बात कहता है।
बता दें ये मामला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में पिछले 11 वर्षो से चली आ रही व्यवस्था बदलाव आ सकता है।
कोर्ट के मुताबिक, ‘पहले सिर्फ कानूनी प्रश्न तय किया जाएगा। एम नागराज के फैसले मे पांच जजों ने कहा था कि एससी एसटी को प्रोन्नति मे आरक्षण देने से पहले पिछड़ेपन और कम प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाने होंगे’।
उल्लेखनीय है कि पांच न्यायाधीशों ने ईवी चेन्नैया मामले में 2005 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा एससी-एसटी वर्ग में किये गए वर्गीकरण को असंवैधानिक ठहरा दिया था। कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी के मामले में राष्ट्रपति के आदेश से जारी सूची में कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती उसमें सिर्फ संसद में ही कानून बना कर बदला जा सकता है।
इसके बाद 2006 में पांच न्यायाधीशों ने एम नागराज के मामले में एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के कानून पर विचार किया। इस फैसले में कोर्ट ने कानून को तो सही ठहराते हुए कहा था कि प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले सरकार को पिछड़ेपन और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े जुटाने होंगे।
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बता दें 2006 से यही फैसला कानून के तौर पर लागू था इसी के आधार पर त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, बिहार और चंडीगड़ प्रशासन के मामले में उच्च न्यायालयों ने एससी-एसटी को दिया गया प्रोन्नति में आरक्षण रद कर दिया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2012 में यूपी पावर कारपोरेशन के केस में उत्तर प्रदेश का प्रोन्नति में आरक्षण का कानून रद कर दिया था।
बता दें ये सारे मामले सुप्रीम कोर्ट में आये थे, जिन्हें आज संविधानपीठ को भेजा गया है।