
बिहार की राजनीति की कल्पना बिना लिट्टी चोखा के संभव ही नही है। बिहार में किसी भी दुकान पर चले जाएं आपको लिट्टी चोखा का भरपूर आनंद जरूर मिलेगा। जगह-जगह इसकी दुकाने सजी हुई रहती हैं और तमाम राजनीतिक किस्से इन्हीं दुकानों पर बनते और बिगड़ते हैं। फिर बहस और चढ़ते तेवर के बीच आवाज आती है कि अरे भाई पहिले लिट्टी खाल ला। इस एक आवाज में ही सभी फिर एकजुट होकर ठहाके लगाने लगते हैं। तमाम राजनीतिक गतिरोध और बहसबाजी वहीं पर रुक जाती है।

लिट्टी चोखा के बारे में कहा जाता है कि यह बहुत ही किफायती, सुपाच्य, पौष्टिक और सहज उपलब्ध है। यह कितना खास और कितना आम है इसकी प्रमाणिकता इसी से हो जाती है कि बड़े-बड़े राजनेता से लेकर एक निचले तबके का आदमी भी इससे भूख मिटा लेता है। इसी के साथ इससे अपनत्व और समानता का भाव पैदा होता है। लिट्टी चोखा व्यस्त शेड्यूल में भोजन और अल्पाहार का एक बेहतर विकल्प बताया जाता है। एक ओर जहां आटा, सत्तू, बैंगन, घी, टमाटर आदि कैलोरी देते हैं तो वहीं यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होता है। कई लोग तो इसका नियमित सेवन तक करते हैं।