Movie Review : इंसाफ बनी ‘अज्‍जी’, लिया पोती के हर दर्द का बदला

मुंबई। इस शुक्रवार फिर कुछ फिल्में अपनी किस्‍मत आजमाने पर्दे पर उतरी है। आज पर्दे पर 5 फिल्‍में रिलीज हुई हैं। उनमें से एक ‘अज्‍जी’ है। पर्दे पर रिलीज से पहले अज्‍जी की कई फिल्म फेस्‍टिवल में स्क्रीनिंग हो चुकी है। 104 मिनट की इस फिल्म में सुषमा देशपांडे, विकास कुमार, अभिषेक बनर्जी लीड किरदार में हैं।

अज्‍जी यौन शोषण पर आधारित फिल्‍म है। ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी फि‍ल्‍म में यौन शोषण के मुद्दे को उठाया गया है। इस साल की ही कई फिल्मों में ऐसे मुद्दे उठाए हैं। अज्‍जी समाज का ऐसा चेहरा सामने लाती है जिसे जानकर भी लोग देखना नहीं चाहते हैं।

फिल्म की कहानी एक गरीब बस्ती में रहने वाले परिवार के इर्द गिर्द घूमती है। उस परिवार में माता पिता और बेटी मंदा के अलावा अज्जी हैं। छोटी बच्‍ची मंदा अपने इलाके के एक नेता के बेटे के हाथों यौनी शोषण का शिकार हो जाती है।

जैसे कि हर कहानी में दिखाया जाता है इसमें भी भ्रष्टाचारी पुलिसवाला मामले को दबाने की कोशिश करता है। इतना ही नहीं वह मंदा के घरवालों को डराता धमकाता भी है। पोती के साथ ऐसा होते देख अज्‍जी उसे अपने तरीके से इंसाफ दिलाने का फैसला लेती है।

बदला लेने के लिए वह अपनी पहचान के कसाई वाले से गोश्त काटना साखती है। कहानी आगे बढ़ती है और और वह अपना बदला ले पाती हैं या नहीं या वह अपना बदला कैसे लेती हैं। यह देखने के लिए आपको सिनेमाघर जाना होगा।

अज्‍जी को भले ही सिनेमाघर में ज्‍यादा दर्शक न मिलें लेकिन यह उन चुनिंदा फिल्मों में से है जो पर्दे पर सिर्फ कहानी नहीं दिखाती बल्कि आपकी हिला कर रख देती है।

फिल्म का हर एक सीन और सीक्‍वेंस आपके मन को भारी कर देते हैं। जांच के दौरान इंस्पेक्टर बच्ची के गुप्त अंगो की जांच खुद करने की कोशिश करता है। ऐसे सीन आपको अंदर से झकझोर कर रख देते हैं। एंटरटेनमेंट से हटकर देखा जाए तो यह फिल्म बेहद उम्‍दा है। फिर चाहे इसकी एक्‍टिंग पर नजर डाली जाए या डायरेक्‍शन देखा जाए दोनों ही कमाल के हैं।

फिल्म की स्‍टार कास्‍ट ने अपनी बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है। सुषमा देशपांडे ने अज्‍जी के किरदार को बखूबी निभाया है। इंस्पेक्टर के किरदार में विकास कुमार और नेता के बेटे के किरदार में अभिषेक बनर्जी की एक्टिंग इतनी उम्‍दा है कि आपको उनसे असल जिंदगी में नफरत हो जाएगी। कसाई के किरदार में सुधीर पांडे ने भी अक्ष्‍छा काम किया है।

देबाशीष मखीजा का डायरेक्‍शन काबिल-ए-तारीफ है। उन्‍होंने इस मुद्दे को बहुत ही समझदारी से सामने रखा है। फिल्म देखकर समझ आता है कि इसे बनाने की असली वजह पैसे कमाना नहीं बल्कि समाज के एक कोने का घिनौना चेहरा इसी समाज के सामने लाना है। फिल्म की सिनेमेटोग्रफी इतनी दमदार है कि कई सीन  अपको फिल्म बीच में छोड़ने तक को मजबूर कर देते है। उस बच्‍ची और अज्‍जी का दर्द इतना असहनीय हो जाता है कि आप उसे देखने में भी परहेज करने लगेंगे।

स्‍टार – 3.5

एक अज्‍जी के बदले की आग और छोटी बच्‍ची को इंसाफ दिलाने के इस सफर का हिस्‍सा बनने के लिए फिल्म देखने जा सकते हैं।

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