
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे। सात साल बाद चीन की यह उनकी पहली यात्रा होगी, और यह मुलाकातें वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित करेंगी, खासकर तब जब अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर 50% तक के भारी टैरिफ ने भारत-अमेरिका आर्थिक साझेदारी को झटका दिया है।

अमेरिकी टैरिफ का असर और भारत की प्रतिक्रिया
अमेरिका ने हाल ही में भारत के स्टील, कपड़ा, और कृषि उत्पादों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया है, जिसके साथ कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया है। यह कदम रूस से तेल आयात को लेकर भारत को दंडित करने का हिस्सा माना जा रहा है। भारत ने जवाबी टैरिफ की धमकी दी है और विश्व व्यापार संगठन (WTO) में परामर्श शुरू किया है। भारतीय व्यवसायों ने आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और निर्यात मात्रा में कमी की शिकायत की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इन टैरिफ को “अनुचित और अन्यायपूर्ण” करार देते हुए कहा कि अन्य रूसी तेल आयातक देशों, जैसे चीन और यूरोपीय राष्ट्रों, पर ऐसी सजा नहीं थोपी गई है।
भारत-चीन संबंधों में सुधार के संकेत
2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत और चीन के संबंध तनावपूर्ण रहे, लेकिन सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करने के लिए दोनों देशों ने सैनिकों की वापसी और विश्वास-निर्माण के कदम उठाए हैं। हाल के संपर्कों, जैसे कैलाश-मानसरोवर यात्रा की बहाली और प्रत्यक्ष उड़ानों की योजना, ने संबंधों में धीमी लेकिन सकारात्मक प्रगति दिखाई है। तियानजिन समिट में मोदी और शी के बीच होने वाली मुलाकात में सैनिकों की और वापसी, व्यापार और वीजा प्रतिबंधों में ढील, और जलवायु जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग की घोषणाएं अपेक्षित हैं। विश्लेषकों का मानना है कि भारत SCO के हाल के विवादों को पीछे छोड़कर चीन के साथ संबंध सुधारने पर ध्यान देगा, जो मोदी की प्राथमिकता है।
रूस के साथ मजबूत साझेदारी और त्रिपक्षीय चर्चा की संभावना
रूस, जो यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, भारत के साथ अपनी पारंपरिक साझेदारी को मजबूत करने और चीन के साथ रणनीतिक गठजोड़ को गहरा करने की कोशिश में है। रूसी दूतावास के अधिकारियों ने हाल ही में भारत, चीन और रूस के बीच त्रिपक्षीय वार्ता की उम्मीद जताई है। मोदी और पुतिन की मुलाकात में यूक्रेन संकट, रूस-भारत रणनीतिक साझेदारी, और तेल व्यापार पर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव पर चर्चा होने की संभावना है। पुतिन समिट के बाद बीजिंग में द्वितीय विश्व युद्ध की 80वीं वर्षगांठ के सैन्य परेड में भी हिस्सा लेंगे।
SCO समिट का महत्व
31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन में होने वाला SCO समिट 2001 में संगठन की स्थापना के बाद से सबसे बड़ा आयोजन होगा, जिसमें 20 से अधिक देशों के नेता, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, और नौ अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख शामिल होंगे। चीन इस समिट को ग्लोबल साउथ की एकजुटता और अमेरिका के नेतृत्व वाले विश्व व्यवस्था के विकल्प के रूप में पेश करेगा। शी जिनपिंग समिट में SCO के विकास के लिए नई पहल, अगले 10 वर्षों की रणनीति, और वैश्विक शासन सुधार के लिए प्रस्ताव पेश करेंगे। भारत के लिए यह समिट व्यापार, कनेक्टिविटी, और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर अपनी स्थिति मजबूत करने और वैश्विक मंच पर संतुलनकारी भूमिका निभाने का अवसर है।
वैश्विक संदर्भ और चुनौतियां
विश्लेषक एरिक ओलांडर के अनुसार, शी जिनपिंग इस समिट का उपयोग अमेरिका के खिलाफ एक नए बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को प्रदर्शित करने के लिए करेंगे, खासकर जब ट्रम्प प्रशासन ने भारत, चीन, ईरान, और रूस को निशाना बनाया है। हालांकि, SCO की सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर प्रभावशीलता सीमित रही है, और भारत-पाकिस्तान जैसे सदस्य देशों के बीच तनाव ने संयुक्त बयानों को प्रभावित किया है।
भारत ने अप्रैल 2025 में पहलगाम हमले और जून में ईरान पर इजरायली हमलों की SCO निंदा में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था, जिससे संगठन के भीतर मतभेद उजागर हुए। फिर भी, ट्रम्प के टैरिफ और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच, भारत और चीन के बीच सकारात्मक वार्ता की उम्मीद है।