कई चुनाव हारने का बाद भी अखिलेश दिखे लाचार, जातिवाद व धर्मवाद का नहीं उतर रहा फ़ितूर

उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2017 विधानसभा चुनाव से पहले क्षेत्रीय दल खास तौर सपा और बसपा जातिवाद व धर्मवाद के नाम पर खूब वोट बटोरते थे। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी परिवारवाद के खिलाफ और राष्ट्रवाद के नाम पर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई।

इस चुनाव के बाद से यूपी में विधानसभा चुनाव में ही नहीं अपितु लोकसभा चुनाव में भी सपा और बसपा का जातिवादी समीकरण फेल हो गया। इस बार भी विधानसभा चुनाव में सपा के चारो खाना चित्त होने के सबको यह मालुम हो गया कि अब जातिवादी समिकरण के दम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता है।

इस विषय को सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी बखूबी जानते हैं, लेकिन उसके बावजूद भी उनकी वर्तमान नीति से यह स्पष्ट होता है कि उन्हें अब भी थोड़ा बहुत लगता है कि यूपी की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक एकतरफा जिसे पड़ेगा उसको चुनाव में भारी फायदा मिलेगा। इस तर्क को लेकर अखिलेश यादव काफी अलर्ट हो गए हैं।

क्यों कि इस हफ्ते की अगर समीक्षा की जाए तो उनकी नजर पूरे 20 फीसदी वोट पर टिकी है। ऐसे में अखिलेश यादव ने एक हफ्ते में तीन मोर्चे पर मुस्लिम वोटों को लेकर एक्टिव मोड में दिखे।
आपको बता दें कि राज्यसभा में कपिल सिब्बल और जावेद अली खान को एक बार फिर राज्यसभा में भेजने के फैसले से लेकर आजम खान की नाराजगी को दूर करने का जिम्मा उठाते नजर आए अखिलेश यादव।

वहीं समाजवादी पार्टी ने यूपी के आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव में दलित चेहरे पर दांव खेला है। उक्त सीट पर सपा ने आजमगढ़ से सुशील आनंद को उम्मीदवार बनाया है।

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