ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के बाद तथाकथित तौर पर मस्जिद के अंदर सनातन धर्म के कई सांकेतिक प्रमाण प्रकाश में आया है। कोर्ट में पेश की गई सर्वे रिपोर्ट में ज्ञानवापी परिसर के अंदर कमल, नाग का फन और कई तरह के हिंदू प्रतीक पाए जाने की बात कही गई है। वहीं दूसरी ओर इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई जिला जज करें।

उधर इस मामले में आगे की सुनवाई से पहले काशी विश्वनाथ के मंदिर ने बड़ा दावा किया है। उनका कहना है कि मस्जिद के भूतल में एक और शिवलिंग है।
बता दें कि इस मामले को लेकर वाराणसी के सत्र न्यायालय में जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट सुनवाई करेगी। अदालत में डीजीसी सिविल के प्रार्थना पत्र के अलांवा हिंदू पक्ष और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की तरफ से दाखिल की गई आपत्तियों पर भी बहस होगी। कोर्ट में यह भी तय होगा कि ज्ञानवापी के संदर्भ में उपासना स्थल अधिनियम 1991 लागू होता है या नहीं।
इस मामले में हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के याचिका दाखिल करने के साथ श्री काशी विश्वनाथ के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने कि वह ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग की पूजा के लिए सोमवार को कोर्ट में याचिका दाखिल करेंगे।
उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद कभी मस्जिद नहीं थी, वह अनादि काल से मंदिर है। अब जबिक हमारे आराध्य देव मिल गए हैं, तो हम उनकी नियमित पूजा करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे प्रभु रोजाना स्नान, श्रृंगार और भोग-राग के बगैर रहें, यह कितनी कष्टदायक बात है। इसलिए हम अपने भोलेनाथ की पूजा की अनुमति देने के लिए कोर्ट से गुहार लगाएंगे।
बता दें वर्ष 1991 में ज्ञानवापी प्रकरण को लेकर केस दाखिल करने वाले पंडित सोमनाथ व्यास के नाती शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास का कहना है कि मां श्रृंगार गौरी और ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग की पूजा का अधिकार उन्हें मिले। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि ज्ञावापी परिसर के दक्षिण तहखाने की चाबी आज भी उनके और प्रशासन के पास है। तहखाना वर्ष में दो बार रामायण के नवाह्न पाठ के लिए खुलता है। तहखाने की वसीयत वर्ष 2000 में उनके नाना ने उनके और जैनेंद्र कुमार पाठक व्यास के नाम से की थी। फिर वर्ष 2014 में उनके नाना के भाई चंद्रनाथ व्यास ने भी वसीयत की थी। हमारी मांग यह है कि ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण हो।