बिहार विधानसभा में पारित हुआ शराब बंदी संशोधित कानून, जुर्माना देने पर जेल जाने से बच सकते हैं, शराबी

दिलीप कुमार

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बिहार सरकार पर फटकार लगाए जाने के बाद बिहार सरकार ने अवैध शराब उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत देने का कदम उठाया है। बिहार विधानसभा में बिहार सरकार ने बुधवार को मद्य निषेध अधिनियम में संशोधन करके मद्य निषेध और उत्पाद विधेयक 2022 के प्रस्ताव को पारित कराया है।

इस संशोधित विधेयक में कहा गया है कि शराब पीते हुए पकड़े गए लोग अब एक मजिस्ट्रेट के सामने जुर्माना भरकर जेल जाने से बच सकते हैं। हलांकि इस विधेयक में जुर्माने का राशि स्पष्ट नहीं है।

यदि आरोपी के पास जुर्माना भरने में अयोग्य शाबित होता है, तो उसे एक महीने के लिए कैद की सजा भुगतना होगा। इस संशोधित कानून में पहली बार अपराध करने वाले या इसे दुहराने वाले अपराधियों के बीच कोई अंतर नहीं स्पष्ट नहीं किया गया है।

आपको बता दें कि इससे पहले शराबबंदी कानून 2018 के तहत पहली बार अपराध करने वालों के लिए 50,000 रूपये जुर्माना या तीन महीने की कैद का प्रावधान है, जबकि यही अपराध दुहराने वालों के लिए पांच साल का कैद या फिर 1,00,000 जुर्माने का प्रावधान है।

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह माना कि 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद सरकार ने 74 विशेष अदालतों का गठन किया था, उसके बावजूद भी बिहार की अदालतों पर मुकदमों का अतिरिक्त बोझ बढ़ता जा रहा है। इसी मामले को लेकर राज्य के आबकारी मंत्री सुनील कुमार ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम शराब पीने वालों के जगह शराब आपुर्तिकर्ताओं पर शिकंजा कसें।

इसके साथ ही उन्होंने शराब बंदी कानून को लेकर आश्वासन देते हुए कहा कि शराबबंदी कानून जारी रहेगा, क्यों कि इस कानून पर महिलाओं का विशेष समर्थन हासिल है। मैने स्वयं सीएम के साथ सामाजिक सुधार यात्रा के दौरान इसे महसूस किया है।

बतादें कि बिहार विधानसभा में राजद के समीर महासेठ और कांग्रेस के अजीत शर्मा की ओर मद्य निषेध और उत्पाद विधेयक का संशोधित प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसे बिहार सरकार ने खारिज करके खुद का प्रस्ताव पारित किया है। पारित विधेयक को लेकर विपक्षी दलों ने पारित विधेयक में अधिक पारदर्शिता की मांग की और सरकार पर आरोप लगाया कि इस विधेयक के तहत अभी भी पुलिस और आबकारी विभाग के पास असीमित अधिकार है।

इस संशोधित विधेयक पर महासेठन का कहना है कि शराब बंदी कानून को लेकर यह आखिरी संशोधन नहीं है। अभी भी इसमें बहुत सारी खामियां हैं, जैसे उस संपत्ति की जब्ती जहां शराब की बरामदगी की गई हो। उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा विधेयक में जुर्माना तय नहीं किया गया है। मान लीजिए किसी गरीब से बड़ी रकम मांगी जाती है तो उसके पास जेल जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

संशोधित कानून लंबित मामलों पर भी लागू होगा। इस कानून के लागू होने से कई कैदियों को राहत मिलेगा, क्योंकि बिहार जेल में कई ऐसे कैदी हैं, जो पिछले दो महीने से जेल में बंद हैं और उनकी अभी तक कोर्ट में सुनवाई नहीं हो पाया है। अब वो कैदी जुर्माना भरकर जेल से बाहर निकल सकेंगे। आपको यह जानकर ताज्जुव होगा कि बिहार जेल की कुल क्षमता 46,449 कैदियों की है, लेकिन वर्तमान में 62,823 कैदियों को बंद किया गया है। वो भी इन कैदियों में करीब 40 प्रतीशत के लगभग कैदी शराब पीने के आरोप में बंद हैं।

बिहार सरकार ने विधानसभा में तब यह संशोधित कानून लाई है, जब दिसंबर में सुप्रिम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश एन. वी. रमना ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम 2016 पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि यह कदम दूरदर्शिता के आभाव के साथ उठाया गया था, जिस वजह से राज्य की अदालत पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा है। उन्होंने कहा कि पटना हाई कोर्ट के करीब 14 से 15 जज रोजाना शाराबबंदी से जुड़े मामले पर सुनवाई में ही व्यस्त रहते हैं।

बतादें कि 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एणएण सुदरेश की बेंच ने शराबबंदी से जुड़े मामलों में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसके असर के मुल्यांकन और न्यायिक बुनियादी ढ़ांचे को अपग्रेड किए बिना शराबबंदी कानून लागू करने को लेकर बिहार सरकार पर फटकार लगाई थी। इस दौरान बिहार की अदालतों में करीब 3.5 लाख शराबबंदी के मामले लंबित हैं।

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