चार धाम परियोजना को SC की मंज़ूरी

सुप्रीम कोर्ट ने चार धाम परियोजना या ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाने की इजाज़त दे दी है, इसके साथ डबल लेन हाइवे बनाने का रास्ता अब साफ़ हो गया है। मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ ने की। चार धाम परियोजना को मंज़ूरी देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि, “अदालत न्यायिक समीक्षा में सेना के सुरक्षा संसाधनों को तय नहीं कर सकती। हाइवे के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने में रक्षा मंत्रालय की कोई दुर्भावना नहीं है” सुप्रीम कोर्ट के पूर्व रिटायर्ड जज, जस्टिस एके सीकरी के नेतृत्व में निरीक्षण समिति गठित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “पर्यावरण के हित में सभी उपचारात्मक उपाय सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व रिटायर्ड जज, जस्टिस एके सीकरी के नेतृत्व में एक निरीक्षण समिति गठित की गई है। हाल के दिनों में सीमाओं पर सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियाँ सामने आई हैं और यह अदालत सशस्त्र बलों की ढांचागत ज़रूरतों का दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा की, “अदालत यहाँ सरकार की नीतिगत पसंद पर सवाल नहीं उठा सकती है और इसकी अनुमति नहीं है। राजमार्ग, जो सशस्त्र बलों के लिए रणनीतिक सड़कें हैं, उनकी तुलना ऐसी अन्य पहाड़ी सड़कों से नहीं की जा सकती है। हमने पाया कि रक्षा मंत्रालय द्वारा दायर MA में कोई दुर्भावना नहीं है। MoD सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकता को डिज़ाइन करने के लिए अधिकृत है। सुरक्षा समिति की बैठक में उठाई गई सुरक्षा चिंताओं से रक्षा मंत्रालय की प्रामाणिकता स्पष्ट है। सशस्त्र बलों को मीडिया को दिए गए बयान के लिए पत्थर में लिखे गए बयान के रूप में नहीं लिया जा सकता है। न्यायिक समीक्षा के अभ्यास में यह अदालत सेना की आवश्यकताओं का दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है।”

सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने चारधाम सड़कों की चौड़ाई को 5.5 मीटर तक सीमित करने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश में संशोधन की मांग करते हुए कहा था की, “ये भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर जाने वाली सीमा सड़कों के लिए फ़ीडर सड़कें हैं, उन्हें 10 मीटर तक चौड़ा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।” कॉलिन गोंज़ाल्विस ने याचिकाकर्ता की तरफ़ से कहा की, “हिमालय के पर्यावरण की स्थिति ख़तरे में है। अभी तक आधी परियोजना पूरी हुई है, हादसा दुनिया ने देखा है, अब आपको पूरा करना है तो ज़रूर करें लेकिन बर्बादी के लिए तैयार रहें। नुकसान कम करने के उपाय करने की बजाय उसे बढ़ाया जा रहा है। सड़कों को चौड़ा करने के उपाय तकनीकी और पर्यावरण उपायों के साथ होने चाहिए। डिज़ाइन, ढलान, हरियाली, जंगल कटान, विस्फ़ोट से पहाड़ काटने आदि को ध्यान में रखते हुए संबद्ध विशेषज्ञों की राय से करना चाहिए।”

गोंज़ल्विस ने बताया कि, “ऋषिकेश से माना इलाके में विकास के नाम पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई पहाड़ों को विस्फ़ोट से तोड़ने के कार्यों से भू स्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। प्राकृतिक आपदाएं, जैसे बाढ़ और बादल फटने की भी घटनाएं बढ़ी हैं। इस बाबत गठित उच्चाधिकार समिति HPC की भी रिपोर्ट्स ने कई गंभीर मुद्दों की ओर इशारा किया है। हिमालय के उच्च इलाकों में 50 किलोमीटर के दायरे में कई हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं। चारधाम क्षेत्र में भी विकास के नाम पर अंधाधुंध निर्माण जारी है, फौरन इनको रोकने की ज़रूरत है। रिफ़्लेक्टर लगाए जाएं जिनसे पहाड़ों की छाया वाले इलाकों में भी रोशनी जाए, हरियाली बढ़े। कई दर्रों में तो जहाँ सूरज की रोशनी नहीं आती वहाँ वनस्पति भी नहीं होती। इस उपाय से हरियाली बढ़ेगी। इन उपायों का आने वाली पीढ़ियों पर असर पड़ेगा क्योंकि पर्यावरण, गंगा यमुना जैसी नदियों के प्रवाह और संरक्षण पर असर पड़ेगा। भगवान चार धाम में नहीं बल्कि प्रकृति में है।”

केंद्र सरकार ने सूप्रीम कोर्ट को बताया कि, “उत्तराखंड में भूस्खलन की चपेट में आने वाले क्षेत्रों के बारे में अध्ययन चल रहा है, जहाँ भारत-चीन सीमा की ओर जाने वाली सड़कों का निर्माण किया जाना है। जनवरी 2021 में भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण, रक्षा भूवैज्ञानिक अनुसंधान संगठन और टिहरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन के साथ संवेदनशील स्थानों पर अध्ययन, नदियों/घाटियों में  डंपिंग को रोकने के लिए क़दम और अन्य मुद्दों के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं।”

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि, “क्या पहाड़ी कटाव के प्रभाव को कम करने और भूस्खलन को रोकने के लिए कोई अध्ययन किया गया है? जिसके जवाब में केंद्र ने कहा कि, “स्थल का दौरा किया जा रहा है। रिपोर्ट्स का इंतज़ार है।”

सड़क चौड़ी करने की मांग करते हुए केंद्र ने कहा कि, “चीन द्वारा दूसरी तरफ़ ज़बरदस्त निर्माण हुआ है। चीन दूसरी तरफ़ हेलीपैड और इमारतें बना रहा है। टैंक, रॉकेट लांचर और तोप ले जाने वाले ट्रकों को इन सड़कों से गुज़रना पड़ सकता है, इसलिए रक्षा की दृष्टि से सड़क की चौड़ाई 10 मीटर की जानी चाहिए।” इस पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, “हम नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक 1962 के हालात में हों, लेकिन रक्षा और पर्यावरण दोनों की ज़रूरतें संतुलित होनी चाहिए।”

याचिकाकर्ता NGO की तरफ़ से कॉलिन गोंज़ाल्विस ने कहा कि, “सेना ने कभी नहीं कहा कि हम सड़कों को चौड़ा करना चाहते हैं और राजनीतिक सत्ता में कोई उच्च व्यक्ति चार धाम यात्रा पर राजमार्ग चाहता था, सेना तब एक अनिच्छुक भागीदार बन गई। इस साल बड़े पैमाने पर भूस्खलन, पहाड़ों में नुक़सान को बढ़ा दिया है।”

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