Kartik Purnima 2020: जानें कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। इस वर्ष यह 30 नवंबर, सोमवार के दिन पड़ रही है। लेकिन पूर्णिमा तिथि आज रविवार दोपहर 12 बजकर 49 मिनट से ही शुरू हो जाएगी। कार्तिक पूर्णिमा का शास्त्रों में बहुत महत्व माना गया है। जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक पूजन करता है, उसके जीवन से सभी संतापों का अंत हो जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, यज्ञ और ईश्वर की उपासना की जाती है। इस दिन किए जाने वाले दान-पुण्य समेत कई धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होते हैं।

नारद पुराण के अनुसार ऐसा कहा गया है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार धारण किया था। इस भगवान कार्तिकेय की विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए। कार्तिक के महीने में गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व मना जाता है। कार्तिक महीने के दौरान गंगा में स्नान करने की शुरुआत शरद पूर्णिमा से हो जाती है और जो कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होती है। इस समय हरिद्वार और वाराणसी के गंगा जी में भारी भीड़ देखने को मिलती है।

शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 29 नवंबर, दोपहर 12 बजकर 49 मिनट से आरंभ
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 30 नवंबर, दोपहर 3 बजे तक

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्य उदय होने से पहले सुबह उठकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करे और भगवान् विष्णु का ध्यान करें। इस दिन व्रत रखने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो व्यक्ति व्रत रखता हैं उसे इस दिन नमक का इस्तेमाल बिलकुल भी नही करना चाहिए। व्रत करने वाले इस दिन ब्राह्मणों या योग्य पात्र को दान करें।कार्तिक पूर्णिमा के दिन आप अपने घरों में हवन, यज्ञ पूजा आदि करा सकते है। इस दिन कुछ लोग गंगा स्नान के लिए जाते हैं। ऐसा मना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान करने से आपकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है और आपका पूण्य फल दोगुना हो जाता है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरा नाम के राक्षस का वध किया था। इसलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान और महाकार्तिकी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह पूर्णिमा बहुत ही फलदायी मानी जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं। फिर किसी पवित्र नदी पर जाकर स्नान करें। अगर ऐसा संभव न हो तो घर के पानी में ही गंगाजल मिला लें। इससे ही स्नान कर लें। इसके बाद शिव जी और लक्ष्मी नारायण की पूजा करें। इस दिन कार्तिकेय जी की पूजा करने का भी विधान है। भगनाव के सामने देसी घी का दीपक जलाएं। पूरे विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन आप अपने घर पर हवन भी कर सकते हैं। मान्यता है कि इस दिन आप सत्यनारायण की कथा भी सुन सकते हैं। खीर का भोग लगाएं। इस प्रसाद को सभी में वितरित करें। शाम के समयलक्ष्मी नरायण की आरती करें। तुलसी जी की भी आरती उतारें। फिर दीपदान करें। घर में हर जगह दीपक लगाएं। अपनी सार्म्थयनुसार किसी जरूरतमंद को भोजन भी करा सकते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार एक राक्षस जिसका नाम त्रिपुर था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। त्रिपुर की तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने त्रिपुर के इस कठोर तप को तोड़ने का निर्णय लिया। जिसके लिए उन्होंने बहुत ही सुंदर अप्सराएं त्रिपुर के पास भेजीं। लेकिन फिर भी त्रिपुर की तपस्या भंग नही हुई। जब त्रिपुर की तपस्या भंग नही हुई तो अंत में ब्रह्मा जी को विवश होकर त्रिपुर के सामने प्रकट होना ही पड़ा।

इसके बाद ब्रह्मा जी ने त्रिपुर को वरदान मांगने के लिए कहा। त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से वर में मांगा कि उसे न तो कोई देवता मार पाए और न हीं कोई मनुष्य। ब्रह्मा जी ने त्रिपुर को यह वरदान दे दिया। जिसके बाद त्रिपुर ने लोगों पर अत्याचार करना शुरु कर दिया। त्रिपुर के अंदर अहंकार इतना बढ़ गया कि उसने कैलाश पर्वत पर ही आक्रमण कर दिया। जिसके बाद भगवान शिव और त्रिपुर के बीच में बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध काफी लंबे समय तक चला। जिसके बाद भगवान शिव ने ब्रह्मा जी और श्री हरि नारायण विष्णु की मदद से त्रिपुर का अंत कर दिया।

इसके साथ ही शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार मत्स्य रूप कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही धारण किया था और प्रलय काल के दौरान वेदों की रक्षा की थी।

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